संत दादूदयाल एव दादू पथ, संत दादूदयाल की समाधि (sant dadudayal avm dadu panth, sant dadudayal ki samadhi)

संत दादूदयाल एव दादू पथ (sant dadudayal avm dadu panth)

संत दादूदयाल
संत दादूदयाल

दादूदयाल का जन्म चैत्र शुक्ला अष्टमी 1544 ई .में अहमदाबाद में हुआ था ।एक जनश्रुति के अनुसार यहाँ के ।नागर बाह्मण लोदीरामजी को साबरमती नदी में बहते संदूक में मिले थे । कुछ विद्वान इन्हें मोची या धुनिया मुसलमान जाति का बताते हैं । कहा जाता है कि गुरु वृद्धानन्द ने 11 वर्ष की उम्र में इन्हें उपदेश दिया ।वृद्धानन्द कबीर के शिष्य थे ।19 वर्ष की उम्र में संत दादूदयाल ने सांभर ( राजस्थान ) आकर अपने सिद्धान्तों का प्रचार – प्रसार प्रारम्भ किया । दादू ने कविताओं के माध्यम से धार्मिक आडम्बरों का खण्डन किया ।इनके उपदेश ‘ दादूवाणी ‘ कहलाते हैं ।’ दादूवाणी ‘ में ढूंढाड़ी भाषा में लगभग 5000 दोहे संकलित है । दादूदयाल ने 1660 ई .में नरायणा ( जयपुर ) के निकट भैराणा पहाड़ी पर समाधि ली

यह स्थान ‘ दादूखोल ‘ कहलाता है ।

ऐसा माना जाता है कि इन्होंने फतेहपुर खा सीकरी में अकबर से भेंट की ।

29 नियमों दादूदयाल ने ‘ दादूपंथ ‘ का प्रवर्तन किया

जिसकी प्रधान गद्दी व संहिता जयपुर जिले की सांभर तहसील के नरैना ( नरायणा ) गाँव में है ।


1.संत रैदास ( संत रविदास ), प्राणनाथजी, सुंदर दास जी (sant redas (sant ravidas), prannathaji, sundar das ji)

संत दादूदयाल की समाधि (sant dadudayal ki samadhi)

यहाँ पर शमी वृक्ष ( खेजड़ा ) के नीचे इन्होंने तपस्या की इनके जैन तथा आराधना केन्द्र ‘ दादू द्वारा कहलाते हैं ।

दादूदयाल जी की शिष्य शैमिक पंथ परम्परा में गरीब दासजी , मिस्किन दास जी , बखनाजी , रज्जबजी , सुंदर दास जी , संत दास जी , माधोदास जी एवं – हावली जगन्नाथ जी प्रसिद्ध हुए थे।दीक्षा दी । दादू पंथ में ‘ निर्गुण – निराकार – निरंजन ब्रह्म ‘ की आराधना की । दादूपंथियों के सत्संग को ‘ अलख दरीबा कहते हैं । दादूपंथी संतों के चार मत हैं — खालसा , विरक्त , उत्तरादे या अनुयायी स्थानधारी तथा खाकी रक्षा करते है दादपंधी साधओं के शवों को न तो जलाया जाता है और दफनाया जाता है , बल्कि उन्हें पशु – पक्षियों को खाने के लिय जगल में छोड़ दिया जाता है । दादजी की शिष्य परम्परा गाँव में प्रमख शिष्य हुए हैं इनमें से 5 शिष्यों ने भिन्न – भिन्न स्थानों पर दादू द्वारा की स्थापना की तथा दादू पंथ के 52 स्तंभ कहलाते हैं

दादू जी के शिष्यों में सुंदर दास जी एवं रजब जी सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए थे ।


1.राजस्थान में संत एवं संप्रदाय, संत पीपाजी, संत धन्ना, गुरु अर्जुन, संत रजबजी (rajasthan me sant avm sampradaay, sant pipaji, sant dhanna, guru arjun, sant rajabaji)

2.स्वांगिया माता (आवड़ माता), आशापुरा माता (svangiya mata (aavad mata), aashapura mata)


3.जीणमाता, जीणमाता की ननद (jinmata, jinmata ki nanad)

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