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संत चरणदास जी एवं चरणदासी पंथ, संत सहजोबाई, दया बाई, संत मावजी (sant charandas ji avm charandasi panth, sant sahajobai, daya bai, sant mavaji)

संत चरणदास जी एवं चरणदासी पंथ (sant charandas ji avm charandasi panth)

संत चरणदास जी
संत चरणदास जी

अलवर जिले के डेहरा गाँव मे संत चरणदास जी का जन्म 1703 ई . प्रारम्भिक नाम में मुरलीधर जी एवं कुजू बाई के घर हुआ था। मुनि शुकदेव ने इन्हें दीक्षा देकर ‘ चरणट चरणदास जी ने निर्गुण निराकार ब्रह्म की सखी भात उपासना करने का उपदेश दिया था। इनका मत ‘ सगुण तथा निर्गुण भक्ति धारा का मिश्रण ‘ क्या जाता है । इन्होंने मुस्लिम आक्रमणकारी नादिरशाह के आक्रमण की पहले से भविष्यवाणी की कर दी थी । चरणदासी सम्प्रदाय में 42 नियमों की आचार संहिता है इस सम्प्रदाय की प्रधान गद्दी दिल्ली में है । इनके अधिकांश अनुयायी वने को मेवात , हरियाणा एवं दिल्ली में मिलते हैं ।

ब्रह्म – चरित्र ‘ , ज्ञान सावजी सागर ‘ एवं ‘ ज्ञान स्वरोदय ‘ चरणदास जी की प्रमुख रचनाएँ हैं ।

चरणदास जी की प्रमुख शिष्याओं में संत सहजो बाई और संत दयाबाई का उल्लेख का बखान किया गया है ।


1.राजस्थान के मुस्लिम संत एवं पीर, ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (rajasthan ke mushilam santn avm pir, khvaja muinnudin chishti)

संत सहजोबाई (sant sahajobai)

इनका जन्म मेवात प्रदेश के डेहरा ग्राम में हुआ था ।

कुछ विद्वान इनका जन्म परीक्षितपुरा ( दिल्ली ) में हुआ मानते हैं ।

नावे से इनका ग्रन्थ सहज प्रकाश है । सहजोबाई का मुख्य स्थान ( गद्दी ) दिल्ली में है ।

सहजोबाई , चरणदासजी की बुआ श्रीमती अनूपी देवी की पुत्री थी ।


1.राजस्थान के लोकनृत्य – घूमर नृत्य, ढोल नृत्य, बिंदौरी नृत्य, झूमर नृत्य, चंग नृत्य, गीदड़ नृत्य, घुइला नृत्य (rajasthan ke locknartya – gumar nartya, dhol nartya, bindori nartya, jumar nartya, chang nartya, gidad nartya, duila nartya )

दया बाई (daya bai)

इनका जन्म डेहरा ग्राम ( अलवर ) में हुआ माना जाता है ।

दयाबाई ने ‘ दयाबोध ‘ एवं ‘ विनयमालिका ‘ नाम ग्रन्थों मैं उपस्थित हैं ।

रचना की जनकल्याण दयाबाई की समाधि कानपुर ( उत्तरप्रदेश ) के निकट रमेल गाँव ‘ हसन चिश्न में उपस्थित है । संन्यासिय दयाबाई संत चरणदास के चाचा केशव की पुत्री थी ।


1.मीरा बाई, मीरा का विवाह (mira bai, mira ka vivaha)

संत मावजी (sant mavaji)

दक्षिण राजस्थान के आदिवासी वनवासी भीलों में आध्यात्मिक लोक क्रांति लाने वाले संत मावजी का जन्म 1714 ई . में डूंगरपुर जिले आसपुर तहसील के साबला गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । ऐसा माना जाता है कि मात्र तेरह वर्ष की उम्र में संत मावजी को ज्ञान प्राप्त हुआ । मावजी को ‘ श्रीकृष्ण का निष्कलंक अवतार माना जाता है । संत मावजी ने माही नदी के किनारे आदिवासियों के तीर्थ ‘ वेणेश्वर धाम को आदिवासियों में लोकप्रिय बनाया था। यह स्थान वर्तमान में डूंगरपुर जिले में स्थित है , जहाँ वेणेश्वर शिव तथा मावजी के मन्दिर है । संत मावजी ने ‘ निष्कलंक सम्प्रदाय की स्थापना की थी। सम्प्रदाय की पीठ साबला गाँव ( डूंगरपुर ) में है । संत मावजी ने आदिवासी समाज में व्याप्त कुप्रथाओं यथा अंधविश्वास , मांस सेवन , कन्या विक्रय आदि का विरोध किया तथा लोगों को सादा जीवन बिताने की प्रेरणा दी ।

मावजी के उपदेश चोपड़ा ‘ कहलाते हैं जो वागड़ी भाषा में संकलित हैं ।

इनका वाचन करके प्रतिवर्ष मकर सक्रांति को भविष्यवाणियाँ की जाती हैं ।

1.राजस्थान के जातीय लोकनृत्य – इंण्डोणी, शकरिया, पणिहारी, बागड़िया, रणबाजा, रतवई, मावलिया, होली, नजा, रसिया, शिकारी, लहंगी, चकरी, धाकड़ (endoni, shakariya, panihari, bagadiya, ranbaja, ratvai, mavaliya, holi, naja, rasiya, shikari, lahangi, chakari, dhakad)


2.राजस्थान के जनजातीय लोक नृत्य – गवरी ( राई ), गैर, नेजा, व्दिचक्री, घूमरा, युद्ध नृत्य, वालर, कूद, लूर, मोरिया, गरवा, मांदल, रायण, गौर गणगौर (gavari rai, ger, neja, divchakir, gumar, yudh nartya, valar, kud, lur, moriya, garva, mandal, rayan, gor gangor)


3.राजस्थान के व्यवसायिक लोक नृत्य, तेरहताली, कच्छी घोडी, भवाई (rajasthan ke vyaavasaayik lock nartya, terahatali, kachchhi ghodi, bhavai)


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