संत लालदास जी एवं लालदासी सम्प्रदाय (sant laladas ji avm laldasi sampradaay)
मध्यकाल में मेवात क्षेत्र में धार्मिक पुनर्जागरण का कार्य प्रसिद्ध संत लालदास जी ने किया था। इनका जन्म धौली दूव गाँव ( अलवर ) में 1540 ई . में हुआ था। मध्यकाल में मेवात क्षेत्र में धार्मिक पुनर्जागरण का कार्य प्रसिद्ध संत लालदास जी ने किया था। इनका जन्म धौली दूव गाँव ( अलवर ) में 1540 ई . में हुआ था। इनके पिता का नाम चाँदमल जी एवं माता का नाम समदा बाई था । मेव जाति में जन्मे लालदास जी मुस्लिम संत गद्दन चिश्ती से दीक्षा लेकर निर्गुण भक्ति का उपदेश दिया । इनका देहान्त भरतपुर जिले के नगला गाँव में हुआ है , यहीं पर लालदासी सम्प्रदाय की प्रधान पीठ उपस्थित है । इनकी समाधि शेरपुर ( अलवर ) में स्थित है । इन्होंने मेवात क्षेत्र में हिन्दू मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया था ।
1.जाम्भोजी ( गुरु जंभेश्वर ), विश्नोई सम्प्रदाय (jambhoji (guru jambheshvar), vishnoi sampradaay)
लालदासी सम्प्रदाय (laldasi sampradaay)
लालदासी सम्प्रदाय के साधु पुरुषार्थी होते हैं तथा स्वयं कमाकरखाते है ।
अलवर एवं भरतपुर जिलों में मेव जाति के लोग इनके अनुयायी होते है ।
लालदास जी के उपदेश लालदास की चेतावणियाँ में संग्रहित एवं स्थगित हैं । संत हरिदास जी एवं निरंजनी सम्प्रदाय डीडवाना ( नागौर ) के निकट कापड़ोद गाँव में जन्मे हरिसिंह । सांखला प्रारम्भ में डकैत थे । एक संन्यासी के उपदेश सुनने के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ तथा हरिदास जी के नाम से प्रसिद्ध हए थे ।इन्होंने निर्गुण भक्ति का उपदेश देकर ‘ निरंजनी सम्प्रदाय ‘ चलाया गया । इनके उपदेश मंत्र राजप्रकाश ‘ एवं ‘ हरिपुरुष जी की वाणी में संग्रहित हैं ।अन्य ग्रंथ — भक्त विरदावली , भरथरी संवाद ।
निरंजनी सम्प्रदाय (niranjani sampradaay)
निरंजनी सम्प्रदाय की प्रधानपीठ गाढ़ा ( डीडवाना , नागौर ) में स्थित हरिसिंह है ।
इस सम्प्रदाय में परमात्मा को ‘ अलख निरंजन ‘ एवं ‘ हरि सुनने के निरंजन ‘ कहा जाता है ।
निरंजनी साधु दो प्रकार के होते हैं – निहंग एवं घरबारी ।
3.राणी सती ( दादीजी ), ज्वाला माता, शाकम्भरी माता, जमवाय माता, नागणेची माता (rani sati (dadaji), jvala mata, shakambhari mata, jamavay mata, nagenchi mata)