रामस्नेही सम्प्रदाय (ramsanehi sampradaay)
यह वैष्णव धर्म की एक प्रमुख निर्गुण भक्ति उपासक विचारधारा है । उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत रामानन्द के चार शिष्यों ने राजस्थान में भिन्न – भिन्न रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रारम्भ किया । इनकी प्रधान गद्दी शाहपुरा ( भीलवाड़ा ) में है जहाँ पर फूलडोल महोत्सव मनाया जाता है । रामस्नेही साधु गुलाबी रंग की पोशाक पहनते हैं तथा दाढ़ी – मूंछ । नहीं रखते है। रामस्नेही सम्प्रदाय में मूर्तिपूजा निषिद्ध है ।
रामस्नेहियों की विचारधारा एवं उपदेश नैतिक आचरण , सत्यनिष्ठा एवं धार्मिक अनुशासन पर आधारित है ।
इनके आराधना स्थल को रामद्वारा कहते हैं ।
राजस्थान में रामस्नेहियों की चार प्रमुख पीठे नैण ( नागौर ) , शाहपुरा ( भीलवाड़ा ) , सिंहथल ( बीकानेर ) एवं खेड़ापा ( जोधपुर ) मैं उपस्थित हैं
जिनकी स्थापना रामस्नेही संतों क्रमशः दरियावजी , रामचरण जी , हरिरामदास जी एवं रामदास जी ने की ।
1.संत रामचरण जी, हरिराम दास जी, संत रामदास जी (sant ramcharn ji, hariram das ji, sant ramdas ji)
1.संत लालदास जी एवं लालदासी सम्प्रदाय (sant laladas ji avm laldasi sampradaay)
( i ) संत दरियावजी एवं रेण शाखा (sant dariyavaji ren shakha)
संत दरियावजी का जन्म 1676 ई . में जैतारण ( पाली ) में जन्माष्टमी के दिन मानजी धुनिया एवं गीगण बाई के घर पर हुआ था । इनके गुरु पेमदास जी थे । स्वयं दरियावजी ने अपनी ‘ वाणी ‘ में अपने को धुनिया मुसलमान बताया है । इन्होंने काशी जाकर पण्डित स्वरूपानन्द से शास्त्र ज्ञान की प्राप्ति की थी। इन्होंने 1712 ई . में रैण में गुरु पेमदास से ‘ राम ‘ नाम की दीक्षा ली । रैण गाँव वर्तमान में नागौर जिले में मेड़ता के समीप उपस्थित है , यहाँ ‘ दरिया पंथ ‘ की प्रधान गद्दी उपस्थित है । दरियाव जी ने कहा कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी राम नाम का स्मरण तथा गुरु भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति की जा सकती है उन्होंने राम शब्द के रा को राम तथा मैं को मोहम्मद मानकर हिंदू मुस्लिम सब नव्य को आगे बढ़ाया है एवं प्रोत्साहित किया है
1.जीणमाता, जीणमाता की ननद (jinmata, jinmata ki nanad)
3.सकराय माता (शंकरा), सच्चियाय माता, अम्बिका माता, दधिमती माता (sakaray mata (shankara), sachiyay mata, ambika mata, dadhimati mata)