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गौड़ीय सम्प्रदाय (ब्रह्म सम्प्रदाय), वल्लभ सम्प्रदाय (पुष्टिमार्गीय), विट्ठलनाथ जी के पुत्र (godiya sampradaay(brahaman sampradaay), vallabha sampradaay(pustimargiya), vitalanath ji ke putra)

गौड़ीय सम्प्रदाय ( ब्रह्म सम्प्रदाय ) (godiya sampradaay(brahaman sampradaay)

गौड़ीय सम्प्रदाय
गौड़ीय सम्प्रदाय

स्वामी मध्वाचार्य ( 12वीं सदी ) द्वारा प्रवर्तित इस सम्प्रदाय को गौड़ स्वामी ने लोकप्रिय बनाया था, इसी कारण इसे ‘ गौड़ीय सम्प्रदाय के रूप में ख्याति मिली थी। मध्वाचार्य ने ‘ पूर्णप्रज्ञ भाष्य ‘ की रचना करके ‘ द्वैतवाद ‘ नामक दर्शन का प्रतिपादन किया । इस सम्प्रदाय में भगवान विष्णु के ‘ सच्चिदानंद ( सत् + चित्त + आनन्द ) रूप की पूजा होती है । बंगाल में गौरांग ( चैतन्य ) महाप्रभु ने इस सम्प्रदाय को लोकप्रिय बनाया था । राजस्थान में सर्वप्रथम आमेर के राजा मानसिंह ने इस सम्प्रदाय । से प्रभावित होकर वृंदावन में गोविन्द देव जी मन्दिर बनवाया गया। तत्पश्चात जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने राजमहलों के पीछे गोविन्द देवजी का मन्दिर बनवाया था। राजस्थान के करौली का मदनमोहन मन्दिर भी इसी सम्प्रदाय से सम्बन्धित है

1.राजस्थान के रामस्नेही सम्प्रदाय, संत दरियावजी रेण शाखा (rajasthan ke ramsanehi sampradaay, sant dariyavaji ren shakha)


वल्लभ सम्प्रदाय ( पुष्टिमार्गीय ) (vallabha sampradaay(pustimargiya)

इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य थे । इनका जन्म वाराणसी के तैलंगभट्ट ब्राह्मण परिवार में हुआ था ।

वल्लभ मतावलम्बी कहते हैं कि भक्ति ज्ञान से श्रेष्ठ है ।

इस सम्प्रदाय में ईश्वर की कृपा हेतु पुष्टि शब्द का प्रयोग होता | श्रीनाथ मन्दिर ( नाथद्वारा ) है ।

इस सम्प्रदाय के मन्दिरों में प्रतिदिन आठ बार पूजा होती है तथा इनका प्रमुख मंत्र ‘ श्रीकृष्णम् शरणम् ममः ‘ है । वल्लभाचार्य ने ‘ अणुभाष्य ‘ लिखकर शुद्धाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया । उन्होंने वृंदावन में ‘ श्रीनाथ मन्दिर बनवाया । औरगजेब के शासनकाल में जब 1669 ई . में हिन्दू मन्दिरी एवं मूर्तियों को विखण्डित किया जाने लगा तो गोस्वामी दार एवं उनके चाचा गोविन्द जी द्वारा वृंदावन से श्रीनाथ जी की प्रतिमा को मेवाड़ लाया गया । यहाँ के धर्म प्रेमी महाराणा राजसिंह के सहयोग से फरवरी , 1672 ई . में बनास नदी के किनारे सिंहाड़ गाँव ‘ में ‘ श्रीनाथ जी का मन्दिर बनवाकर प्रतिमा स्थापित की ।

वर्तमान में यह स्थान नाथद्वारा कहलाता है जो राजसमन्द जिले में स्थित है ।

यह स्थान राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ है । यहाँ पर श्रीनाथ जी के विग्रह ( मूर्ति का एक रूप ) की पूजा होती है

1.संत रामचरण जी, हरिराम दास जी, संत रामदास जी (sant ramcharn ji, hariram das ji, sant ramdas ji)


विट्ठलनाथ जी के पुत्र (vitalanath ji ke putra)

वल्लभाचार्य के उत्तराधिकारी विट्ठलनाथ जी ने अष्ट छाप ‘ नामक कवि मण्डली का गठन किया , जिन्होंने राधाकृष्ण सम्बन्धी विविध काव्य रचनाएँ लिखीं । विट्ठलनाथ के सात पुत्रों ने अलग अलग विग्रहों के आधार पर सात पीठों ( मन्दिरों ) की स्थापना की । इनमें से पाँच राजस्थान में , एक उत्तर प्रदेश में तथा एक गुजरात में स्थित है

( i ) मथुरेश जी कोटा ( राजस्थान ) ( ii ) विट्ठलनाथ जी नाथद्वारा ( राजसमन्द ) । ( iii ) द्वारिकाधीश जी कॉकरोली ( राजसमन्द ) ( iv ) गोकुलचन्द्र जी कामाँ ( भरतपुर ) ( v ) मदनमोहन जी कामाँ ( भरतपुर ) ( vi ) गोकुलनाथ जी – गोकुल ( उत्तर प्रदेश ) (vii ) बालकृष्ण जी सूरत ( गुजरात )

किशनगढ़ के महाराजा सांवतसिंह राठौड़ वल्लभ सम्प्रदाय ।।अत्यधिक प्रभावित थे ।उन्होंने अपने दरबारी चित्रकार मोरध्वः निहालचंद से राधा के सौंदर्य स्वरूप ‘ बणी ठणी ‘ का चित्रांक करवाया ।सावंत सिंह कृष्णभक्ति में लीन होकर वृंदावन चले ।तथा अपना नाम भक्त नागरीदास रख लिया ।

1.संत लालदास जी एवं लालदासी सम्प्रदाय (sant laladas ji avm laldasi sampradaay)


2.जाम्भोजी ( गुरु जंभेश्वर ), विश्नोई सम्प्रदाय (jambhoji (guru jambheshvar), vishnoi sampradaay)


3.संत दादूदयाल एव दादू पथ, संत दादूदयाल की समाधि (sant dadudayal avm dadu panth, sant dadudayal ki samadhi)


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