शिला देवी (shila devi )
आमेर एवं जयपुर के कच्छवाह राजवंश तथा यहाँ के आमजन की आराध्य शिला देवी की प्रतिमा 16वीं सदी में आमेर के राजा मानसिंह प्रथम पूर्वी बंगाल के जैस्सोर ( वर्तमान बांग्लादेश ) से लाये थे । ढूंढाड़ क्षेत्र में यह दोह प्रचलित है सांगानेर को सांगो बाबो , जयपुर को हड़मान आमेर की सल्ला देवी , ल्यायो राजा मान वर्तमान में देवी का भव्य मन्दिर ‘ आमेर के महलों में स्थित है । मन्दिर में देवी की अष्टभुजी प्रतिमा ‘ महिषासुर मर्दिनी ‘ के रूप में है । प्रतिवर्ष चैत्र एवं आश्विन नवरात्रों में यहाँ मेले जैसा माहौल रहता है । मन्दिर का पुजारी भक्तों को चरणामृत या मदिरा का प्रसाद देता है । (मांग के अनुसार )
1.राजस्थान के लोकवदेता, रामदेवजी (rajasthan ke lockvadevta, ramdevji)
2.महानायक पाबूजी (mahanayak pabuji)
3.आमजा माता, कुशाला माता, हर्षद माता, बीजासण माता,वीरातरा माता (aamaja mata, kushala mata, harshad mata, bijasan mata, veeratra mata)
शीतला माता ( शील माता ) (shitala mata (shil mata)
सम्पूर्ण राजस्थान में चेचक निवारक देवी ‘ के रूप में शीतला माता की पूजा चैत्र कृष्ण सप्तमी एवं अष्टमी को की जाती है । लोग चूल्हे नहीं जलाते , एक दिन पूर्व का बना हुआ भोजन करमेती ( बास्योड़ा ) विशेषकर बाजरे का खीचड़ा , पंचकूटा कैर , सागरी . की तथा गूदा , अमचूर एवं कूमटिया की सब्जी एवं चूरमा का भोग लगाकर खाते हैं । राजस्थान के ग्रामीण अंचल में सैकड़ों स्थानों पर शीतलाष्टमी पर राजगढ़ मेले का आयोजन किया जाता है । शीतला माता राजस्थान की एकमात्र देवी है जिनकी खंडित मूर्ति की पूजा होती है । घरों में लोग परिंडे ( मटकी रखने का स्थान ) के निकट ईंटें रखकर भी माता की पूजा करते हैं । माता का वाहन गधा है एवं इनका पुजारी कुम्हार जाति का होता है । शीतलाष्टमी को गाँवों में बच्चों के चेहरे पर काजल की बिंदिया लगाकर उन्हें ‘ गधिया ‘ ( माता के बच्चे ) कहा जाता है ।
ओरी ( छोटी माता ) निकलने पर शीतला माता की पूजा की जाती है ।
राजस्थान में शीतला माता का प्रसिद्ध मन्दिर चाकसू ( जयपुर ) के निकट शील की इँगरी पर उपस्थित है ।
इस मन्दिर का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह ने निर्माण करवाया था ।
यहाँ पर प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी चैत्र कृष्ण अष्टमी को मेला भरता है ।