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जाम्भोजी ( गुरु जंभेश्वर ), विश्नोई सम्प्रदाय (jambhoji (guru jambheshvar), vishnoi sampradaay)

जाम्भोजी ( गुरु जंभेश्वर )(jambhoji (guru jambheshvar)

गुरु जंभेश्वर
गुरु जंभेश्वर

जाम्भोजी का जन्म 1451 ई . ( भाद्रपद कृष्ण अष्टमी , विक्रम संवत् 1508 ) में जन्माष्टमी के दिन नागौर जिले के पीपासर गाँव में पँवार वंशीय राजपूत ठाकुर लोहट जी के घर हुआ । इनकी माता का नाम हंसा देवी था । जाम्भोजी को विष्णु का अवतार ‘ माना जाता है । इन्होंने संवत् 1542 में 29 शिक्षाओं के आधार पर विश्नोई ( 20 + 9 ) सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया था। इन्होंने अपने सम्प्रदाय का नाम ‘ प्रहलाद पंथी विश्नोई ‘ रखा था। इनके अधिकांश अनुयायी जाट कृषक है । जाम्भोजी के 29 नियमों एवं 120 शब्दों का संग्रह जंब सागर में है । जम्ब संहिता एवं ‘ विश्नोई धर्म प्रकाश इनके अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रंथ उपस्थित हैं । गुरु जंभेश्वर एक चमत्कारिक संत थे , जिन्होंने वैष्णव , जैन तथा इस्लाम धर्मों के उपदेशों का समन्वय करके एक सार्वभौमिक पंथ ( विश्नोई पंथ ) का प्रवर्तन किया था।

1.संत दादूदयाल एव दादू पथ, संत दादूदयाल की समाधि (sant dadudayal avm dadu panth, sant dadudayal ki samadhi)


2.संत रैदास ( संत रविदास ), प्राणनाथजी, सुंदर दास जी (sant redas (sant ravidas), prannathaji, sundar das ji)

विश्नोई सम्प्रदाय (vishnoi sampradaay)

जाम्भोजी ने अपने पंथ के प्रचार हेतु चार प्रधान शिष्यों – हावली पावजी , लोहा पागल , दत्तानाथ एवं मालदेव को दीक्षा दी थी । जाम्भोजी कबीर से भी प्रभावित हुए थे । वे विधवा विवाह के समर्थक थे । उन्होनें मूर्तिपूजा एवं तीर्थ यात्रा का विरोध किया था। जाम्भोजी पर्यावरण एवं जीव प्रेमी थे इन्होंने खेजड़ी के वृक्ष का महत्व बताया था वन्यजीवों की रक्षा की बात कही । उनके अनुयायी ( विश्नोई ) आज भी हरे वृक्ष नहीं काटते तथा जीवों की रक्षा करते हैं । विश्लेषकों ने गुरु जंभेश्वर को पर्यावरण वैज्ञानिक ‘ कहा गया था। क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम ‘ पर्यावरण चेतना शब्द का प्रयोग किया । जाम्भोजी का देहावसान 1534 ई . में ‘ मुकाम तालवा गाँव ‘ में हुआ । यह गाँव बीकानेर जिले की नोखा तहसील में उपस्थित है । यहाँ पर विश्नोई सम्प्रदाय की प्रधान पीठ एवं जाम्भोजी महाराज की समाधि उपस्थित है ।

इस सम्प्रदाय के अन्य महत्वपूर्ण तीर्थ जाम्भा (फलौदी , जोधपुर) , रामड़ावास (पीपाड़ , जोधपुर) एवं जागुल ( बीकानेर ) हैं ।

मुकाम तालवा ( नोखा , बीकानेर ) में प्रतिवर्ष फाल्गुन अमावस्या इस को मेला भरता है ।

जाम्भोजी विक्रम संवत् 1593 को बीकानेर के निकट लालासर के जंगलों में ब्रह्मलीन हुए , ऐसा माना जाता है ।

1.स्वांगिया माता (आवड़ माता), आशापुरा माता (svangiya mata (aavad mata), aashapura mata)


2.जीणमाता, जीणमाता की ननद (jinmata, jinmata ki nanad)


3.राणी सती ( दादीजी ), ज्वाला माता, शाकम्भरी माता, राणी सती ( दादीजी ), ज्वाला माता, शाकम्भरी माता,जमवाय माता, नागणेची माता (rani sati (dadaji), jvala mata, shakambhari mata, jamavay mata, nagenchi mata)


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