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रामानुज या रामानंदी सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय ( हंस सम्प्रदाय ) (ramanuja ya ramanadi sampradaay, nimbark sampradaay (hansh sampradaay)

रामानुज या रामानंदी सम्प्रदाय (ramanuja ya ramanadi sampradaay)

रामानंदी सम्प्रदाय
रामानंदी सम्प्रदाय

यह वैष्णव मत की सबसे प्राचीन शाखा है , जिसके प्रवर्तक रामानुजाचार्य ( यमुनाचार्य के शिष्य ) थे । इनका जन्म 1017 ई . में आन्ध्र प्रदेश के तिरुपति नगर में हुआ था । रामानुजाचार्य ने ‘ ब्रह्मसूत्र ‘ पर आधारित ‘ श्रीभाष्य ‘ की रचना की । तथा विशिष्टाद्वैत ‘ नामक नवीन भक्ति दर्शन दिया । इस रामानंदी सम्प्रदाय में भगवान श्रीराम को ‘ परब्रह्म ‘ मानकर उनकी पूजा की जाती है , उनके अनुयायी ‘ रामावत ‘ कहलाये । रामानुज के परम शिष्य रामानन्द ने उत्तर भारत में इस सम्प्रदाय का प्रसार किया । उनके अनुयायी रामानन्दी ‘ कहलाते हैं । रामानन्द की भक्ति दास्य भाव की थी , उन्होंने ज्ञानमार्गी रामभक्ति का मत दिया । कबीर , धन्ना , रैदास , सेना एवं पीपा उनके प्रसिद्ध शिष्य राजस्थान में रामानुज ( रामानन्दी ) सम्प्रदाय का प्रारम्भ गलता पीठ के संस्थापक कृष्णदास पयहारी ने किया । उन्होंने यहाँ पर नाथों को शास्त्रार्थ में पराजित करके गलता में रामानन्दी सम्प्रदाय की स्थापना की ।

पयहारी जी के शिष्य अग्रदास जी ने रेवासा ( सीकर ) में इस पीठ की शाखा स्थापित की थी ।

अग्रदासजी ने राम के ‘ भक्ति माधुर्य रूप को माना ।

इन्होंने यहाँ पर ‘ रसिक सम्प्रदाय की स्थापना की ।

जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने इस सम्प्रदाय को प्रश्रय देकर राम रासा ‘ नामक ग्रंथ लिखवाया ।

रामानन्द के कुछ शिष्यों ने भगवान श्रीराम की आराधना ‘ निर्गुण निराकार परब्रह्म ‘ के रूप में की , वे ‘ रामस्नेही ‘ कहलाये थे ,

तथा उनका मत ‘ रामस्नेही सम्प्रदाय ‘ कहलाया था।

इनका वर्णन पूर्व में निर्गुण भक्तिधारा के संत एवं सम्प्रदायों में किया जा चुका है ।

1.शाक्त मत, वैष्णव सम्प्रदाय (shakta mat, veshnava sampradaay)


2.जसनाथी सम्प्रदाय, मारवाड़ का नाथ सम्प्रदाय (jasnathi sampradaay, marwar ka nath sampradaay)

निम्बार्क सम्प्रदाय ( हंस सम्प्रदाय ) (nimbark sampradaay (hansh sampradaay)

12वीं सदी में एक तैलंग ब्राह्मण परिवार में जन्मे निम्बार्काचार्य द्वारा श्रीकृष्ण को परब्रह्म मानकर तथा राधा को उनकी परिणीता के रूप शेषों में मानकर उनके युगल स्वरूप की मधुर सेवा पर आधारित दमन निम्बार्क सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया । आचार्य निम्बार्क ने वेदान्त तक पारिजात भाष्य ‘ लिखकर वैष्णव भक्ति का नया दर्शन द्वैताद्वैत या भेदाभेद ‘ प्रारम्भ किया । राजस्थान में आचार्य परशुराम द्वारा निम्बार्क सम्प्रदाय की पीठ लता सलेमाबाद ‘ ( अजमेर ) में स्थापित की गई थी, जहाँ के पीठाधीश्वर ‘ श्री जी महाराज ‘ कहलाते हैं । आचार्य परशुराम ने राजस्थानी मिश्रित हिन्दी भाषा में परशुराम सागर ‘ की रचना की ।

1.राजस्थान की सगुण भक्ति धारा, शैव मत, नाथ सम्प्रदाय ( पंथ ) (rajasthan ki sahgun bhakti dhara, shev mat, nath sampradaay (panth)


2.गौड़ीय सम्प्रदाय (ब्रह्म सम्प्रदाय), वल्लभ सम्प्रदाय (पुष्टिमार्गीय), विट्ठलनाथ जी के पुत्र (godiya sampradaay(brahaman sampradaay), vallabha sampradaay(pustimargiya), vitalanath ji ke putra)


3.राजस्थान के रामस्नेही सम्प्रदाय, संत दरियावजी रेण शाखा (rajasthan ke ramsanehi sampradaay, sant dariyavaji ren shakha)


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