महाराणा उदयसिंह (maharana udaysingh)(1540-1572 ई.)
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1537 ई . में मेवाड़ के सरदारों ने कुम्भलगढ़ दुर्ग में महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक करके महाराणा घोषित कर दिया ।
उदयसिंह ने सेना एकत्रित करके चित्तौड़ पर धावा बोला जिसमें बनवीर मारा गया तथा चित्तौड़ पर उदयसिंह का अधिकार हो गया । उदयसिंह के शासनकाल में 23 अक्टूबर , 1567 ई . को चित्तौड़ पर मुगल बादशाह अकबर द्वारा आक्रमण करने पर उदयसिंह , राठौड़ जयमल व रावत पत्ता को सेनाध्यक्ष नियुक्त कर कुछ सरदारों सहित जंगल में चले गये । मुगल सेना से युद्ध में जयमल व पत्ता ने प्राणाहुति दी तथा वीरांगनाओं ने अपनी आन – बान के लिए जौहर किया । यह चित्तौड़ का तीसरा साका ‘ ( 1567 ई . ) कहलाता है । अकबर ने जयमल व पत्ता की वीरता से प्रभावित होकर उनकी हाधियों पर चढ़ी हुई पत्थर की मूर्तियाँ बनाकर आगरे के किले के द्वार पर लगाई , जो वर्तमान में बीकानेर के जूनागढ़ किले के द्वार पर स्थित हैं ।
जयमल राठौड़ मेड़ता के शासक थे ।
– 28 फरवरी , 1572 ई . में गोगुन्दा में महाराणा उदयसिंह का देहान्त हो गया जहाँ उनकी समाधि बनाई गई ।
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महाराणा रत्नसिंह (maharana ratnsingh)(1528 – 1531 ई.)
० महाराणा सांगा की मृत्युपरांत 5 फरवरी , 1528 को महाराणा रत्नसिंह चितौड़ के सिंहासन पर बैठा लेकिन 1531 ई को बुंदी में उसकी मृत्यु हो गई
जिसके बाद उसका छोटा भाई विक्रमादित्य मेवाड़ का शासक बना ।
महाराणा विक्रमादित्य (maharana vikramaditya) (1531 – 1536 ई.)
विक्रमादित्य के शासनकाल में 1533 ई . में गुजरात सुल्तान देखना पड़ा । बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया , लेकिन समझौता होने पर वापस लौट गया ।
लेकिन बहादुरशाह द्वारा पुन आक्रमण करने पर रानी कर्मवती ने हुँमायूँ से सहायता हेतु राखी भेजी ।
रानी कर्मवती ने विक्रमादित्य व उदयसिंह को बूंदी भेजकर देवलिया के रावत महाराणा का प्रतिनिधि बनाया ।
बहादुर शाह के विरुद्ध युद्ध में योद्धाओं ने केसरिया किया और हाड़ी रानी के नेतृत्व में वीरांगनाओं ने जौहर किया । यह ‘ चित्तौड़ का द्वितीय साका ‘ ( 1534 ई . ) कहलाता है । रानी कर्मवती का संदेश पाकर पहुँचे हुमायूँ ने तुरन्त बहादुरशाह पर आक्रमण करके उसे चित्तौड़ से भगा दिया तथा विक्रमादित्य को पुनः शासक बनाया । 1536 ई . में दासी पुत्र बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी । बनवीर उदयसिंह को मारना चाहता था लेकिन पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन की बलि देकर उदयसिंह के प्राणों की रक्षा करके उसे सकुशल कुम्भलनेर के किलेदार ‘ आशा देवपुरा के पास पहुँचाया ।
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