शक्तिकुमार, वैरिसिंह, विक्रमसिंह, जैत्रसिंह (shaktikumar, verisingh, vikramsingh, jetrasingh)

शक्तिकुमार (shaktikumar)

वैरिसिंह
वैरिसिंह

शक्ति के बाद अम्बा प्रसाद मेवाड़ का राजा हुआ । उसने चौलुक्यों की राजकुमारी से विवाह किया । अम्बा प्रसाद के बाद शुचिवर्मा , नरवर्मा , कीर्ति वर्मा तथा योगराज, वैरिसिंह मेवाड़ के शासक बने। ये राजा बहुत कमजोर शासक थे तथा बहुत धोड़े क्षेत्र पर ही इनका अधिकार रह गया था । इन राजाओं का अधिकतर राज्य परमारों, चौलुक्यों तथा चौहानों द्वारा दबा लिया गया था ।

योगराज निःसंतान मरा था इसके साथ ही यह पूरी शाखा समाप्त हो गई ।

अतः अल्लट की संतति में से वैरट को गुहिलों का पैतृक राज्य मिला ।

वैरट के बाद हंसपाल राजा बना हंसपाल के समय में गुहिलो खोयी हुए कीर्ति वापिस प्राप्त की । उसके बाद वैरिसिंह मेवाड़ की राज्य गद्दी पर बैठा । उसका एक शिलालेख भैराघाट से मिला। राणा कुंभा ने अपने शिलालेख में इस राजा के बारे में लिखा है

कि उसकी वैरिसिंह ने आहड़ नगर का नया परकोटा बनवाया , जो चारों दिशाओं में चार गोपुरों से भूषित था ।

उसके 22 गुणवान पुत्र थे |


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वैरिसिंह (verisingh)

वैरिसिंह के बाद विजयसिंह मेवाड़ का स्वामी हुआ । उसने मालवा की परमार राजकुमारी से विवाह किया

तथा उससे उत्पन्न कन्या का विवाह हैहयवंशी राजा गयकर्णदेव से किया । विजयसिंह का एक शिलालेख उदयपुर से चार मील उत्तर में स्थित पालड़ी गाँव के कार्तिक स्वामी मंदिर से मिला था।

विजयसिंह के बाद अरिसिंह , चोड़सिंह तथा विक्रमसिंह मेवाड़ के राजा बने थे।


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विक्रमसिंह (vikramsingh)

विक्रमसिंह के बाद रणसिंह अथवा कर्णसिंह मेवाड़ का राजा बना था। कर्णसिंह से गुहिल वंश की दो शाखायें रावल तथा राणा नाम से विभक्त हुई । रावल शाखा मेवाड़ की स्वामी हुई तथा राणा शाखा सीसोद की जागरीदार बनी । रावल शाखा में जैत्रसिंह , तेजसिंह , समरसिंह तथा रत्नसिंह नामक शिलालेख राजा हुए

जबकि राणा शाखा में माहप तथा राहप आदि राजा हुए ।

लकुलीश 734 ई . से लेकर 1213 ई . तक मेवाड़ की राजधानी कभी नागदा है । तो कभी आहड़ रही ।

1213 ई . से 1250 के बीच जब जैत्रसिंह मेवाड़ का राजा बना तब मेवाड़ की राजधानी नागदा थी

किन्तु दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने नागदा पर आक्रमण किया और नागदा को जलाकर राख कर दिया ।

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जैत्रसिंह (jetrasingh)

जैत्रसिंह अपनी राजधानी आहाड़ न ले जाकर चित्तौड़ के दुर्ग में ले गया । जैत्रसिंह ( 1213 ई . ) से लेकर महारावल रत्नसिंह ( 1303 ई . ) तक चित्तौड़ पर रावल शाखा के राजाओं ने शासन किया जैत्रसिंह ने दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश के आक्रमण को विफल किया तथा समकालिक चौहान शासक राजा उदयसिंह के नाडोल राज्य पर आक्रमण किया । उदयसिंह ने अपनी पौत्री रूपा देवी का उसके बाद विवाह जैत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह से करके समझौता कर लिया ।

जेत्रसिंह के उत्तराधिकारी तेजसिंह व समरसिंह हुए ।

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