जालौर, उज्जैन, कन्नौज के प्रतिहार (jalore, ujjain, kannauj ke pratihar)
जालौर, उज्जैन, कन्नौज के प्रतिहार :-
जालौर, उज्जैन, कन्नौज के प्रतिहार की इस शाखा का उद्भव भी मण्डोर से प्रतीत होता है इन प्रतिहारों ने चावड़ों से सर्वप्रथम भीनमाल का राज्य छीना , तदनन्तर आबू , जालौर आदि स्थानों पर उनका अधिकार रहा और फिर उज्जैन को अपनी राजधानी बनाई इसके बाद कन्नौज को भी अपनी राजधानी घोषित की जालौर, उज्जैन, कन्नौज प्रतिहारों की नामावली नागभट्ट प्रथम से प्रारंभ हुई नागभट्ट प्रथम ने सर्वप्रथम जालौर को अपनी राजधानी बनाई। इस वंश का प्रवर्तक नागभट्ट प्रथम माना गया है जिसे नागावलोक भी कहा जाता है ।
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– चौहान राजा भर्तृभट्ट द्वितीय के हासोट के ताम्रपत्र ( 756ईं.) से ज्ञात होता है भर्तृभट्ट द्वितीय नागभट्ट प्रथम ( नागावलोक ) का सामन्त था । नागभट्ट प्रथम प्रतापी शासक था जिसने म्लेच्छों के आक्रमण को निरस्त किया म्लेच्छों से प्रजा की रक्षा करने एवं त्रसित वर्ग का उद्धारक होने के कारण ग्वालियर प्रशस्ति में उसे ‘ नारायण ‘ की उपाधि दी गई । जालौर, उज्जैन, कन्नौज के प्रतिहारों का चौथा शासक वत्सराज हुआ उसने अपने साहस व पराक्रम से गौड़ व बंगाल के शासकों को पराजित कर ख्याति अर्जित की लेकिन राष्ट्रकूट ध्रुवराज ने उसे पराजित कर उसे समाप्त कर दिया ।
मण्डोर के प्रतिहार राजवश (mandhor ke partihar rajvansh)
वत्सराज प्रतिहार (watsaraj pratihar) –
कन्नौज के इन्द्रायुद्ध को वत्सराज ने परास्त कर तथा भाण्डियो को हराकर अपने शक्ति संतुलन को बनाये रखा ।
वत्सराज कुछ समय तक ही इन्द्रायूध को कन्नौज में अपने अधीन सामन्त नहीं रख सका क्योंकि धर्मराज ने उसके स्थान पर चक्रायुध को वहाँ स्थानापन्न किया था। वत्सराज प्रतिहार के समय में जालौर में उद्योतन सुरि नामक जैन मुनि ने 778 ई . में ‘ कवलमाला ‘ तथा जन आचार्य जिनसेन द्वारा 783 ई . में ‘ हरिवंश पुराण ‘ लिखा था जिससे वत्सराज के समय की राजनीतिक धार्मिक तथा राजगि सामाजिक स्थिति पर व्यापक प्रकाश पड़ता है ।
इसकी मृत्यु 794 ई. में होना अनुमानित है ।
वत्सराज की रानी सुंदर देवी से नागभट्ट द्वितीय का जन्म हुआ हुआ , नागभट्ट प्रथम के समान इसे भी नागावलोक कहा जाता था । इसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया । इसके जीवनकाल व शासन की जानकारी ग्वालियर प्रशस्ति तथा अन्य काव्य – ग्रंथों से मिलती है । इन स्रोतों से जानकारी मिलती है कि नागभट्ट द्वितीय ने चक्रायुध को कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया । नागभट्ट द्वितीय ने डीडवाना और कालिंजरा – मण्डल के भूमिदान द्वारा स्थानीय लोगों को संतुष्ट किया और यज्ञों द्वारा धर्म के महत्व की प्रतिष्ठा को बढ़ाया ।
1.राजस्थान के प्रतिहार राजवश (rajasthan ke partihar rajvansh)
3.राजस्थान में सहकारिता आंदोलन (rajasthan me sahakarita aandolan)