मुस्लिम संत एवं पीर (mushilam santn avm pir)
राजस्थान में हिंदुओं के पश्चात सर्वाधिक मुस्लिम संत धर्मावलंबी मिलते हैं । मध्यकाल ( मुगलकाल ) में यहाँ पर अनेक मुस्लिम संतों ने | जनकल्याण तथा भक्ति का मार्ग दिखलाया था। इनमें ख्वाजा मुइनुद्दीन हसन चिश्ती , नरहड़ के पीर , पीर फखरूद्दीन , हमीदुद्दीन नागौरी ( संन्यासियों के सल्तान ) एवं दलेशाह पीर प्रमुख हैं । ख्वाजा मुइनुद्दीन हसन चिश्ती ( अजमेर के ख्वाजा ) – भारत की सूफी संत परम्पराओं में ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती सबसे अधिक लोकप्रिय हुए थे । इनका जन्म ईरान ( फारस ) के ‘ संजर ‘ नामक स्थान पर 1135 ई . में 14वीं रज्जब को हुआ था ।
इनके पिता को नाम हज़रत ख्वाजा सैय्यद गयासुद्दीन तथा माता का नाम बीबी साहेनूर था ।
इनका बचपन खुरासान में बीता ।
अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल ( 12वीं सदी ) में ख्वाजा साहब यहाँ आये ।
इनके गुरु हजरत शेख उस्मान हारूनी थे ।
ख्वाजा साहब का इंतकाल 1233 ई . में अजमेर में हुआ ।
इनकी याद में 1464 ई . में मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी के पुत्र ‘ सुल्तान गयासुद्दीन ने अजमेर में पक्की मज़ार बनवाई ।
2.मीरा बाई, मीरा का विवाह (mira bai, mira ka vivaha)
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (khvaja muinnudin chishti)
साहब की जीवनी होली बायोग्राफी मिर्जा वहीउद्दीन बेग ने लिखी है ।
ख्वाजा साहब की याद में प्रतिवर्ष पहली से छठी रज्जब तक ख्वाजा का उर्स ‘ भरता है
साहब ने हिन्दू – मुस्लिम एकता तथा साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए कार्य किया ।
नरहड़ के पीर ( हजरत शक्कर पीर बाबा ) — शेखावाटी क्षेत्र में लोकप्रिय मुस्लिम संत हजरत शक्कर पीर की दरगाह झुंझुनू जिले में चिड़ावा के निकट नहरड़ ग्राम में है । इन्हें ‘ नरहड़ के पीर ‘ भी कहा जाता है ।
यह स्थान साम्प्रदायिक तथा राष्ट्रीय एकता का अनूठा संगम है ,
जहाँ जन्माष्टमी के दिन उर्स का मेला भरता है ।
ऐसा माना जाता है
कि पागलपन के असाध्य रोगी यहाँ पर जात देने से ठीक हो जाते हैं ।
ये ‘ बांगड़ के धणी ‘ कहलाते हैं ।
3.राजस्थान के व्यवसायिक लोक नृत्य, तेरहताली, कच्छी घोडी, भवाई (rajasthan ke vyaavasaayik lock nartya, terahatali, kachchhi ghodi, bhavai)