चित्तौड़ का दुर्ग (chitor ka durg
गिरि दुर्ग में राजस्थान का गौरव ‘ चित्तौड़ का दुर्ग सबसे प्राचीन और प्रमुख माना जाता है । चित्तौड़ का दुर्ग की संरचना में प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र के आदशों का बहुत अन्दर ढंग से निर्वाह हुआ अतः इसे एक उत्कृष्ट गिरि दुर्ग भी । कहा जा सकता । दिल्ली से मालवा और गुजरात जाने वाले एक प्रमुख मार्ग पर अवस्थित होने के कारण प्राचीन और मध्यकाल में इस किले का विशेष सामरिक महत्त्व था । चित्तौड़ के इस किले पर इतिहास के तीन प्रसिद्ध साके हुए । पहला सन् 1303 ई . में जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर विजय के बाद चित्तौड़ को आक्रान्त किया
दूसरा साका 1534 ई . में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के हमले के समय हुआ ।
तीसरा साका 1567 ई . में हुआ जब अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया ।
तीनों ही अवसरों पर राजपूत योद्धाओं ने केसरिया वस्त्र धारण कर शत्रु से जीवन के अंतिम क्षण तक लड़ते हुए
अपना बलिदान दिया तो क्षत्रिय वीरांगनाओं ने जौहर की ज्वाला में अपने प्राणों की आहुति दी । रानी पदमिनी के जौहर , वीर जयमल राठौड़ और पत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान का साक्षी चित्तौड़ का किला इतिहास में अपना कोई सानी नहीं रखता ।
कविवर वा अभयसिंह बने चित्तौड़ के गौरव के लिए ठीक कहा है
जिण अजोड़ राखी , जुड्यां मेवाड़ा से मरोड़ । किलां मोड़ बिलमा तणं , चित तोड़ण चित्तौड़
1.जालौर का दुर्ग, आबू का अचलगढ़ दुर्ग (jaalor ka durg, aabu ka achalagadh durg)
2.कुम्भलगढ़ दुर्ग, अरावली पर्वत श्रृंखला (kumbhalagadh durg, araavalee parvat shrankhala)
धान्व दुर्ग (dhanva durg)
जल विहीन , खुली भूमि पर , पाँच योजन के घेरे में विस्तृत हों ।
1.राजस्थान के जल दुर्ग, गागरोण दुर्ग, गिरि दुर्ग (rajasthan ke jal durg, gaagaron durg, giree durg)
मही दुर्ग (mahi durg)
( स्थल दुर्ग ) प्रस्तर खण्डों या ईंटों से निर्मित , जो 12 फुट से अधिक चौड़ा तथा चौड़ाई से दुगुना ऊँचा हो ।
1.जालौर का दुर्ग, आबू का अचलगढ़ दुर्ग (jaalor ka durg, aabu ka achalagadh durg)
वाक्ष दुर्ग (vakash durg)
जो चारों ओर से एक योजन की दूरी तक कटीले एवं लम्बे – लम्बे वृक्षों , कंटीले लता गुल्मों एवं झाड़ियों से युक्त हो ।
1.जयगढ़ दुर्ग, निराला दुर्ग (jayagadh durg, niraala durg)
जल दुर्ग (jal durg)
चारों ओर जल से आवृत्त दुर्ग ।
नृ ( नर ) दुर्ग – जो चतुरंगिणी सेना से चारों ओर से सुरक्षित हो ।
वन दुर्ग (van durg)
वन दुर्ग वह होता है जो सघन बीहड़ वन में बना । हो तथा जिसके चारों ओर दलदल या सघन कांटेदार झाड़ियाँ हों । यथा – रणथम्भौर का दुर्ग । कौटिल्य के अनुसार प्रथम दो प्रकार के दुर्ग जन संकुल स्थानों की सुरक्षा के लिए हैं और अन्तिम दो प्रकार जंगलों की रक्षा के लिए हैं ।
विष्णु धर्मसूत्र में दुर्गों के छ : प्रकार बताये हैं
3.प्राइमरी मेमोरी ( मैन मैमोरी ), मैमोरी, मेग्नेटिक मेमोरी (primary memory(men memory), memory, magnetic memory)