महाराणा प्रताप (maharana parthap)(1572 – 1597 ई.)
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9 मई , 1540 को जन्मे महाराणा प्रताप को 1572 ई . में गोगुन्दा में राजसिंहासन पर बिठाया गया । प्रताप का राज्याभिषेक समारोह कुंभलगढ़ में आयोजित किया गया ।
राणा प्रताप आदिवासियों में कीका ( छोटा बच्चा ) के नाम से प्रसिद्ध थे ।
महाराणा प्रताप को अधीनता स्वीकार करने को राजी करने हेतु अकबर ने सर्वप्रथम 1572 ई . को जलाल खाँ को दूत के रूप में भेजा , तत्पश्चात क्रमशः मानसिंह , भगवन्त दास तथा टोडरमल (सबसे अन्त में) को भेजा लेकिन महाराणा प्रताप अधीनता स्वीकार करने को तैयार नहीं हुआ ।
अकबर ने राणा प्रताप को अधीन करने हेतु 2 अप्रेल , 1576 को मानसिंह के नेतृत्व में विशाल सेना भेजी।
1.रावल रत्नसिंह, गोरा व बादल राजपूत सरदार (raval ratansingh, gora v badal rajput sardar)
2.महाराणा कुम्भा (maharana kumbha)
हल्दीघाटी (राजसमंद) का युद्ध haldighati rajsamand ka yudha)(21 जून, 1576 ई.)
हल्दी घाटी युद्ध के अन्य नाम मेवाड़ की थर्मोपॉली ( कर्नल टॉड )
खमनौर का युद्ध ( अबुल फजल )
गोगुन्दा का युद्ध ( बदायूँनी ) जो स्वयं उपस्थित था ।
सम्बन्धित पक्ष — राणा प्रताप व मानसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना के मध्य ।
महाराणा प्रताप जब युद्ध भूमि में मुगल सेना द्वारा घिर गये थे
तब झाला बीदा ने उनके सिर से राजकीय छत्र खींचकर अपने सिर पर धारण किया था ।
हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप का सेनापति हकीम खाँ सूरी था ।
कुम्भलगढ़ का युद्ध (kumbhalgad ka yudha)(1578 ई.)
सम्बन्धित पक्ष — महाराणा प्रताप व शाहबाज खाँ के मध्य ।
युद्ध के पश्चात राणा प्रताप अपने परिवार सहित चूलिया गाँव में आ बसे जहाँ प्रताप की मुलाकात अपने मंत्री भामाशाह व उनके भाई ताराचंद से हुई
जिन्होंने राणा की आर्थिक सहायता की जिससे राणा प्रताप को सेना संगठित करने में मदद मिली ।
दिवेर का युद्ध (diver ka yudha)(1582 ई.)
अजमेर मेवाड़ मार्ग में स्थित महत्त्वपूर्ण चौकी दिवेर पर सुल्तान खाँ के नेतृत्व में मुगल सेना का कब्जा था । इस पर प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ी सरदारों ने धावा बोलकर सुल्तान खाँ को हराकर इस पर कब्जा कर लिया । इस युद्ध में महाराणा के पुत्र अमरसिंह ने अद्भुत साहस का परिचय दिया । कर्नल टॉड ने दिवेर के युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा है । राणा प्रताप ने लूणा राठौड़ को चावण्ड से खदेड़ कर चावण्ड को अपनी राजधानी बनाया तथा यहाँ चामुण्ड ( चावण्डा ) माताजी का मंदिर बनवाया । चावण्ड में 19 जनवरी , 1597 को महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई । चावण्ड के निकट बाण्डोली नामक स्थान पर प्रताप का अंतिम संस्कार किया गया जहाँ पर आठ खंभों पर बनी महाराणा प्रताप की भव्य छतरी है ।
1.शक्तिकुमार, वैरिसिंह, विक्रमसिंह, जैत्रसिंह (shaktikumar, verisingh, vikramsingh, jetrasingh)
2.राणा हम्मीर, महाराणा मोकल, महाराणा मोकल (rana hammir, maharana mokal, maharana mokal)
3.महाराणा रायमल, महाराणा सांगा (maharana raymal, maharana sanga)