मेवाड़ का सर्वाधिक शासन गुहिल (सिसोदिया) राजवंश (mevadh ka sarvadhik shasan guhil (sisodiya) rajvansh)
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विश्व में सर्वाधिक समय तक शासन करने वाला राजवंश मेवाड़ का गुहिल सिसोदिया राजवंश माना जाता है ।
गुहिल सिसोदिया राजवंश शासकों ने मुगलो की अधीनता स्वीकार करने के बाद भी कभी बादशाह के दरबार नहीं गये व न ही मुगलों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये । उदयपुर के महाराणा भारत के इतिहास में ‘ हिन्दुआ सूरज ‘ कहलाएं गुहिल वंश की नींव गुहादित्य ( गुहिल ) ने 566 ई . में दी जो आनन्दपुर के अंतिम शासक , राजा शिलादित्य पुत्र था । गुहिल वंश की प्रारम्भिक राजधानी नागदा ‘ (नागद्रह ) थी । गुहिल वंश के शासक नागादित्य की हत्या करके भीलों ने ईडर का राज्य छीन लिया । नागादित्य के पश्चात बप्पा रावल गुहिल वंश का प्रथम प्रतापी ने शासक हुआ जिसे हारित ऋषि के आशीर्वाद से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया ।
बप्पा रावल का मूल नाम ‘ कालभोज ‘ था जबकि ‘ बप्पा ‘ उसकी उपादी है ।
रावल बप्पा ने मौर्य शासक मानमोरी ( मान मौर्य) को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया ।
बप्पा ने सोने के सिक्के चलाये तथा कैलाशपुरी गाँव में एकलिंग जी के मंदिर का निर्माण किया ।
रावल बप्पा से लेकर अल्लट तक के राजाओं की राजधानी नागदा थी ।
1.संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (sampuran gramin rojgar yojana)(S.G.R.Y)
2.डांग क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम, जनता जल योजना (dhang chetriya vikas karyakram, janta jal yojana)
भर्तृभट्ट(प्रथम) bhartrbhatat (partham)
बप्पा के बाद मेवाड़ में खुम्माण ( प्रथम ) मत्तट , भर्तृभट्ट (प्रथम), सिंह, खुम्माण (द्वितीय) महायक, खुम्माण ( तृतीय ), भर्तृभट्ट (द्वितीय) तथा अल्लन् राजा हुए । अल्लट के बाद नरवाहन राजा हुआ । उसके समय का एक शिलालेख आहड़ के एकलिंग शिवालय से कुछ ऊँचे स्थान पर स्थित लकुलीश (जिसे नाथों का मंदिर भी कहते हैं ) से मिला है ।
यह शिलालेख वि . सं . 1028 (ईस्वी 971 ) का है।
नरवाहन के बाद शालिवाहन राजा बना जिसके अनेक वंशज मारवाड़ के खेड़ तथा गुजरात के अन्हिलवाड़ा , काठियावाड़ आदि में चले गये और छोटे – बड़े जागीरदार हो गये ।
शालिवाहन के बाद शक्तिकुमार राजा हुआ ।
शक्तिकुमार के समय में मालवा के परमार राजा मुंज ने आहड़ पर चढ़ाई की ।
इस युद्ध राठौड राजा धवल ने शक्तिकुमार की सहायता की किन्तु शक्तिकुमार की करारी हार हुई और मुंज ने आहड़ नगर को तोड़कर चित्तौड़ का दुर्ग तथा उसके आसपास का काफी क्षेत्र अपने अधीन कर लिया ।
ग्यारहवीं शताब्दी के यपूर्वाद्ध तक मेवाड़ का काफी भाग जिसमें चित्तौड़ भी शामिल था परमारों के अधीन बना रहा ।
उसके बाद चौलुक्य ( सोलंकी ) सिद्धराज ने परमारों से मालवा तथा मेवाड़ का काफी क्षेत्र छीन लिया ।
2.मगरा क्षेत्रीय विकास योजना (magra chetriya vikas yojana)
3.बायो गैस योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (bayo gess yojana, pradhanmantri karshi sichai yojana)