संगीत शैली के रूप, ध्रुपद संगीत (sangeet shailee ke rup)

ध्रुपद संगीत (dhrupad sangeet) – इसका उदभव ‘ धव नामक रूपक – प्रबन्ध इसे गायन शैली में ढालने का ध्रुपद संगीत श्रेय ग्वालियर नरेश मानसिंह को जाता है । इस रूप में ब्रजभाषा की प्रधानता है । मृदग या पखावज की गायन में संगत की जाती है । स्थायी , अन्तरा , संचारी तथा आभोग इसके चार खण्ड है । नेर ) , गवरी ध्रुपद गायन की शैली को बानियाँ कहते हैं यथा गोहरहार बानी पीला बानो ( तानसेन की बानी ) ‘ डागुर ‘ ( ब्रजचन्द की बानी ) , खंडार ( श्री चन्द की बानी ) , नोहर बानी । ख्यालख्याल शब्द फारसी भाषा का है जिसका तात्पर्य है । 7 – रागनियों विचार अथवा कल्पना ।
ख्याल संगीत (khyaal sangeet)
सर्वाधिक लोकप्रिय एक स्वर प्रधान गायन शैली है ।
यंत्रों के जौनपुर के सुल्तान शाह शक को ख्याल का प्रतिपादक माना जाता है
जबकि कुछ विद्वान अमीर खुसरो को यह श्रेय देते हैं ।
विषय वस्तु संगीत (vishay vastu sangeet)
राजस्तुति , नायिका वर्णन , श्रृंगार रस तथा विवाह यहीं पर माधोपुर , गायन में तबले की संगत की जाती है ।
प्रमुख गायक – कुमार गंध सदारंग , मनरंग , अदारंग , मुहम्मद शाह रंगीले । ।
1.राजस्थान के मुस्लिम संत एवं पीर, ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (rajasthan ke mushilam santn avm pir, khvaja muinnudin chishti)
घराना संगीत (gharaana sangeet)
वालियर घराना , किराना घराना , पटियाला निवासी घराना , आगरा घराना ‘ धमार ‘ उत्साहपूर्ण नाच – गान , उछलकूद आदि का द्योतक गायन स्तर पर जो होली के अवसर पर होता है । धमार में नवीन उद्भावना का यंत्रों के विशेष महत्व होता है । सर्वप्रथम ‘ संगीत – शिरोमणि ‘ में उल्लिखित धमार गीतों में वैष्णव संतों द्वारा रचित विशिष्ट पद गाये जाते हैं । प्रायः कृष्ण और गोपियों के होली खेलने का चित्रण बड़ताल किया जाता है । इसमें पखावज की संगत की जाती है । यह श्रृंगार रस प्रधान तथा लय प्रधान शैली का गायन है
जो दो प्रकार का होता है – ( i ) गुप्त ( ii ) प्रकाश ।
गायक – बहराम खाँ , उस्ताद वजीर खाँ , अहमद अली खाँ , के यहाँ हैदर बख्श , फय्याज खां , विलायत खाँ
1.मीरा बाई, मीरा का विवाह (mira bai, mira ka vivaha)
3.आउटपुट डिवाइस, मॉनिटर, CRT मोनिटर, फ्लेट पैनल मोनिटर (output devais, monitor, CRT monitor, flat panel monitor)