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मेवाड़ के राणा कुम्भा और अलाउद्दीन खिलजी (mevaad ke raana kumbha, alauddeen khilajee)

 

मेवाड़ के राणा कुम्भा (mevaad ke raana kumbha)

मेवाड़ के राणा कुम्भा यशस्वी शासक राणा कुम्भा के शासन काल ( 1433 – 1468 ई . ) में चित्तौड़ अपनी समृद्धि और कीर्ति की पराकाष्ठा पर पहुँचा कुम्भा एक महान निर्माता था । अपने राज्य की सुरक्षा के लिए उसने छोटे बड़े 32 किलों का निर्माण व जीर्णोद्धार करवाया । एकलिंग माहात्म्य , कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति और कुम्भलगढ़ शिलालेख से कुम्भा के निर्माण कार्यों की विस्तृत जानकारी मिलती है ।

कुम्भा ने चित्तौड़ के प्राचीन किले का जीर्णोद्धार करवाया तथा उसकी सुदृढ़ प्राचीर , उन्नत बुर्जा व विशाल  प्रवेश द्वारों का निर्माण करवाकर एक अभेद्य दुर्ग का स्वरूप प्रदान किया ।

वीरविनोद के अनुसार कुम्भा ने चित्तौड़ के किले पर कीर्तिस्तम्भ ( विजयस्तम्भ ) , कुम्भश्याम मन्दिर , लक्ष्मीनाथ मन्दिर , रामकुण्ड इत्यादि बनवाये ।

उसने कुकडेश्वर के कुण्ड का जीर्णोद्धार करवाया और किले का रास्ता जो बड़ा विकट और पहाड़ी था उसमें चार दरवाजे और परकोटा तैयार करवाकर उसे दुरुस्त करवाया ।

महाराणा मेवाड़ के राणा कुम्भा ने किले के प्रवेश द्वार ( रामपोल , हनुमानपोल , भैरवपोल , महालक्ष्मीपोल , चामुण्डापोल , तारापोल और राजपोल ) बनवाये ।

उसने वहाँ आदिवराह का मन्दिर , जलयंत्र ( अरहट ) सहित कई तालाब एवं बावड़ियाँ भी बनवाई ।

1.राजस्थान के दुर्ग, भूमि दुर्ग की विशेषताएं, वीर अमरसिंह राठौड़ (rajasthan ke durg, bhumi durg ki visheshatay, veer amarsingh rathor)


2.भूमि का दुर्ग एवं धान्वन का दुर्ग, सोनारगढ़ का दुर्ग (bhumi ka durg avm dhanvan ka durg, sonargad ka durg)

अलाउद्दीन खिलजी (alauddeen khilajee)

यद्यपि इस किले पर अधिकांशतः मेवाड़ गुहिल राजवंश का आधिपत्य रहा

तथापि विभिन्न कालों में यह किला मोरी ( परमार ) , प्रतिहार , परमार , सोलंकी , खिलजी सोनगरे चौहानों और मुगल शासकों के भी अधीन रहा । अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर के कान्हड़दे सोनगरा भाई मालदेव सोनगरा को , जो इतिहास में ‘ मालदेव मूछाला ‘ के नाम से विख्यात है चित्तौड़ का हाकिम नियुक्त किया । अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद गुहिल वंशीय हम्मीर ने ( जो कि मेवाड़ के सीसोद संस्थान का स्वामी था )

सोनगरों से चित्तौड़ ले लिया ।

अपने उक्त पैतृक स्थान के नाम पर ही उसके वंशज सिसोदिया कहलाये ।

हम्मीर की इस सफलता में बारू जी चारण व उसकी माँ बिरवड़ी देवी की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही ।

1.वन का दुर्ग, वन दुर्ग की विशेषताएं, अचलदास खींची री वचनिका (van ka durg, van durg ki visheshatay, achal daas kheenchee ri vachanika)

2.चित्तौड़ का दुर्ग, धान्व दुर्ग, मही दुर्ग, वाक्ष दुर्ग, वन दुर्ग (chitor ka durg, dhanva durg, mahi durg, jal durg, vakash durg, van durg)


3.राजस्थान के प्रमुख दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग, बप्पा रावल (rajasthan ke parmukh durg, chittod durg, bappa raval)

 

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