चित्तौड़ दुर्ग (chittod durg)
रानी पदमिनी , राजमाता कर्मवती , वीर गोरा – बादल , जयमल और । कल्ला राठौड़ व पत्ता सिसोदिया के अपूर्व पराक्रम और बलिदान का पावन स्थल चित्तौड़ का किला इतिहास में अपना कोई मुकाबला नहीं रखता । इसी कारण यह किला सब में सिरमौर माना जाता है । ‘ गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ्या ‘ है । ( कहावत ) यह किला चित्तौड़ दुर्ग जंक्शन रेल्वे स्टेशन से 3 – 4 किमी . दूर गंभीरी व बेड़च नदियों के संगम स्थल के समीप अरावली पर्वतमाला ( मेसा पठार ) पर बना है । समुद्रतल से इसकी ऊँचाई लगभग 185 ) फीट है । क्षेत्रफल की दृष्टि से इसकी लम्बाई लगभग 8 किमी . व चौड़ाई 2 किमी . है । दिल्ली से मालवा और गुजरात जाने वाले मार्ग पर अवस्थित होने के कारण प्राचीन और मध्यकाल में इस किले का विशेष सामरिक महत्त्व था ।
चित्तौड़ के इस प्राचीन निर्माता के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है ।
एक जनश्रुति के अनुसार यह किला महाभारत काल में भी विद्यमान था ।
उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर पता चलता है । कि इसका सम्बन्ध मोरी ( परमार ) वंशीय शासकों से था ।
मेवाड़ के इतिहास प्रसिद्ध ग्रंथ वीरविनोद के अनुसार मौर्य राजा चित्रग ( चित्रागद ) ने यह किला बनवाकर अपने नाम पर इसका नाम ” चित्रकोट रखा था , उसी का अपभ्रंश वर्तमान चित्तौड़ है ।
2.शाक्त मत, वैष्णव सम्प्रदाय (shakta mat, veshnava sampradaay)
बप्पा रावल (bappa raval)
इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार यहाँ के मोरी वंश अंतिम शासक मान मोरी था
जिसके द्वारा निर्मित एक तालाब किले के भीतर आज भी विद्यमान है ।
मेवाड़ में गुहिल राजवंश के संस्थापक बप्पा रावल इस अंतिम मौर्य शासक को पराजित कर आठवीं शताब्दी ई . के लगभग चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया । तत्पश्चात् मालवा के परमार राजा मंज ने इसे अपने राज्यान्तर्गत किया तथा फिर गुजरात के प्रताप सोलंकी नरेश सिद्धराज जयसिंह ने चित्तौड़ के इस ऐतिहासिक दुर्ग पर अपनी विजय पताका फहरायी । बारहवीं शताब्दी ई . के लगभग चित्तौड़ दुर्ग पर पुनः गुहिल राजवंश का आधिपत्य हुआ ।
वस्तुतः चित्तौड़ के किले पर अधिकार करने के लिए जितने युद्ध लड़े गये
उतने शायद ही किसी अन्य किले लिए लड़े गये हों ।
1.जसनाथी सम्प्रदाय, मारवाड़ का नाथ सम्प्रदाय (jasnathi sampradaay, marwar ka nath sampradaay)
3.राजस्थान के रामस्नेही सम्प्रदाय, संत दरियावजी रेण शाखा (rajasthan ke ramsanehi sampradaay, sant dariyavaji ren shakha)