ठुमरी संगीत (thumaree sangeet)
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शास्त्रीय तथा लोक संगीत ठुमरी संगीत दोनों के तत्व विद्यमान होते हैं । यह भावप्रधान तथा चपल चाल वाला शृंगार प्रधान गीत है जिसमें नियमों की जटिलता नहीं होती है । अवध के नवाब वाजिद अली शाह के राज यदरबार में ठुमरी का जन्म माना जाता है । ठुमरी को नाट्य गीति , काव्य गीति भी कहा जाता है । प्रमुख विषय – राधा – कृष्ण की क्रीड़ा , नायक व नायिका की रसपूर्ण शृंगार अभिव्यक्ति नर्तकियों तथा वेश्याओं ने इस शैली को खूब अपनाया । रचना के आधार पर ठुमरी दो प्रकार की होती है
( i ) बोलबांट बंदिश — अधिक शब्दों से युक्त । इसके निर्माता के नाम के साथ पिया शब्द जुड़ा रहता है ।
( ii ) बोल बनाव कम शब्दों युक्त इसमें स्वरों का प्रसार अधिक तथा छोटी मुरकियों का प्रयोग अधिक होता है ।
टप्पा संगीत (tappa sangeet)
पंजाब में उत्पन्न तथा अवध के दरबार में ठुमरी के साथ ही विकसित टप्पा ( हिन्दी मिश्रित पंजाबी भाषा ) श्रृंगार प्रधान गीत है । कठिन तथा सूक्ष्म इस गायन शैली में आरम्भ से ही बोलों की छोटी – छोटी तानों का प्रयोग किया जाता है ।
यह आलाप रहित शैली है जिसे मध्यलय में गाया जाता है ।
हवेली संगीत (havelee sangeet)
भक्ति का माध्यम हवेली संगीत नाथद्वारा , उदयपुर , चित्तौड़ तथा मारवाड़ में पुष्टिमार्गी वैष्णव परम्परा से जुड़ा हुआ है ।
मूलतः । ‘ ब्रज ‘ क्षेत्र में विकसित इस संगीत शैली में ध्रुपद , धमार , कीर्तन आदि शैलियों का विकास हुआ ।
दादरा संगीत (daadara sangeet)
इस शैली में श्रृंगारिक भावनाओं के गीतों को तान में पिरोकर मनमोहक रूप में प्रस्तुत किया जाता है ।
तराना संगीत (taraana sangeet)
यह कर्कश राग है जिसमें कभी भी अर्थपूर्ण शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है
मॉड संगीत (mod sangeet)
शृंगार रस आत्मक राज शैली जो राजा महाराजाओं की विलास पीर्य महफिल में गाई जाती हैं
तथा केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश गीत को इस राग में प्रसिद्धि मिली है
2.गवरी लोकनाट्य, तमाशा लोकनाट्य (gavari locknatkiya, tamasha locknatkiya)
3.राजस्थान के लोकनाट्य – ख्याल लोकनाट्य, रम्मत लोकनाट्य (rajasthan ke locknatkiya – khyala locknatkiya, rammat locknatkiya)