मीरा बाई (mira bai)
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‘ संत शिरोमणि ‘ अन्य कृष्णभक्त मीरा बाई का जन्म ‘ बाजोल गाँव ( वर्तमान नागौर जिले में डेगाना के निकट ) में 1498 ई . में हुआ था। इनके बचपन का नाम पेमल है। कु छ इतिहासकार मीरा का जन्म स्थान कुड़की ग्राम ( पाली ) मानते हैं जो वर्तमान में जैतारण के निकट उपस्थित है । ,राव रतनसिंह एवं माता वीर कॅवरी थी । डॉ . जयसिंह नीरज के अनुसार मीरा का बाल्यकाल कुड़की गाँव ( वर्तमान में पाली जिले की जैतारण तहसील में ) तथा मेड़ता ग्राम राव रतनसिंह की जागीर थी । मीरा के पितामह ( दादाजी ) राव दूदा ( राव जोधा के पुत्र ) मेड़ता के जागीरदार थे । प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ . गोपीनाथ शर्मा मीरा का जन्म कुड़की में हुआ था।
यह गाँव पाली जिले में जोधपुर – पुष्कर मार्ग पर उपस्थित है ।
वर्तमान में यहाँ पर एक लघु दुर्ग ( मीरागढ़ ) एवं मीराबाई के बाल्यकाल से सम्बन्धित अनेक महत्त्वपूर्ण स्थान उपस्थित है
मीरा के दादा दूदाजी वैष्णव धर्म के उपासक थे
उन्होंने मेड़ता में ‘ चारभुजानाथ का मन्दिर ‘ ( मीरा बाई का मंदिर ) बनवाया था।
मीरा के जीवनवृत्त का लेख मीरा की पदावलियों एवं भजनों के अलावा प्रियदास कृत ‘ भक्तमाल ‘ एवं ‘ मेड़तिया री ख्यात तथा कर्नल जेम्स टॉड के इतिहासपरक साहित्य में स्थित है ।
2.राजस्थान के जनजातीय लोक नृत्य – गवरी ( राई ), गैर, नेजा, व्दिचक्री, घूमरा, युद्ध नृत्य, वालर, कूद, लूर, मोरिया, गरवा, मांदल, रायण, गौर गणगौर (gavari rai, ger, neja, divchakir, gumar, yudh nartya, valar, kud, lur, moriya, garva, mandal, rayan, gor gangor)
मीरा का विवाह (mira ka vivaha)
1516 ई . में मेवाड़ के महाराणा साँगा के ज्येष्ठ । पुत्र राजकुमार भोजराज के साथ हुआ था।
लेकिन विवाह के सात वर्ष बाद ही भोजराज का स्वर्गवास हो गया था।
मीरा के लिए राणा साँगा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुंभश्याम मंदिर के पास कुंवरपदे का महल ’ बनाया था।
मीरा ने कृष्ण को पति के रूप में मानकर आराधना की थी।
मीराबाई के गुरु संत रैदास ( राईदास ) चमार जाति के थे । कहा जाता है कि चैतन्य महाप्रभु के शिष्य जीव गोस्वामी मीराँबाई से प्रभावित थे तथा मीरा उनसे प्रभावित थीं । मीराबाई ने ‘ सगुण भक्ति मार्ग ‘ अपनाया था। मीरा को ‘ राजस्थान की राधा ‘ भी कहा जाता है । मीरा ने कृष्णभक्ति में सैकड़ों भजनों की रचना ब्रज मिश्रित राजस्थानी भाषा में की । मीरा के पदचिह्नों पर चलने वाले लोग ‘ मीरादासी ‘ कहलाते हैं । वर्तमान में मीरादासी सम्प्रदाय के लोगों की संख्या नगण्य है । ऐसा माना जाता है कि अपने जीवन के अंतिम समय में मीराबाई मेवाड़ से मेड़ता एवं वृंदावन तथा वहाँ से द्वारिका चली गई
तथा अन्त में डाकोर ( गुजरात ) के रणछोड़राय की मूर्ति में विलीन हो गई ।
मीरा के पदों को ‘ हरजस ‘ कहा जाता है ।
रामस्नेही सम्प्रदाय , चरणदासी सम्प्रदाय , दादूपंथी एवं जैन ग्रंथों में ये हरजस ‘ संकलित हैं ।
मीरा की प्रमुख रचनाएँ पदावली ‘ , नरसी जी रो मायरो ‘ , ( रत्ना खाती के सहयोग से रचित ) ‘ राग गोविन्द , राग सोरठ एवं ‘ सत्यभामाजी नू रूसणो हैं ।
1.आउटपुट डिवाइस, मॉनिटर, CRT मोनिटर, फ्लेट पैनल मोनिटर (output devais, monitor, CRT monitor, flat panel monitor)