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स्वांगिया माता (आवड़ माता), आशापुरा माता (svangiya mata (aavad mata), aashapura mata)

स्वांगिया माता ( आवड़ माता ) (svangiya mata (aavad mata)

स्वांगिया माता
स्वांगिया माता

जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी स्वांगिया माता को गहाणी ‘ स्वांगिया जीदेवी स्वांगिया ‘ आदि नामों से भी जाना जाता है । वांग ‘ का अर्थ ‘ भाला होता है । माता के हाथ में मुड़ा हुआ भाला जो जैसलमेर के राजचिह्न में भी उपस्थित है । राजचिह्न के ऊपर ‘ शकुन चिड़ी ‘ का अंकन है , जो स्वांगिया जी का प्रतीक माना जाता है । एक लोक कथा के अनुसार महाभारत काल में जब यादव लोग जरासंध से पराजित हुए थे तो भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि जब तक जरासंध के पास देवी का दिया हुआ चमत्कारिक स्वांग ( भाला ) रहेगा , तब तक वह विजयी होता रहेगा । इस पर यादवों ने तपस्या करके देवी ( शक्ति ) को प्रसन्न किया एवं वरदान स्वरूप ‘ भाला ‘ माँगा देवी के माँगने पर भी जरासंध ने ‘ भाला ‘ नहीं लौटाया तो शक्ति ने जरासंध को युद्ध में हराकर स्वांग ‘ ( भाला ) प्राप्त कर लिया था ।

युद्ध में स्वांग ( भाला ) कुछ मुड़ गया था।

इस सम्बन्ध में यह दोहा प्रचलित है :

“छीन स्वांग दे कृष्ण को ” “कयो मात अस बैण स्वांगृहाणी नाम मम ” ” जपा करे दिन रैण ।


1.जीणमाता, जीणमाता की ननद (jinmata, jinmata ki nanad)


2.राणी सती ( दादीजी ), ज्वाला माता, शाकम्भरी माता, जमवाय माता, नागणेची माता (rani sati (dadaji), jvala mata, shakambhari mata, jamavay mata, nagenchi mata)


3.सकराय माता (शंकरा), सच्चियाय माता, अम्बिका माता, दधिमती माता (sakaray mata (shankara), sachiyay mata, ambika mata, dadhimati mata)

आशापुरा माता (aashapura mata)

राजस्थान में आशापुरा माता के तीन प्रमुख मन्दिर हैं — पाट स्थान नाडोल ( पाली ) , महोदरी आशापुरा , मोदएँ ( जालौर ) एवं आशापुरा माताजी ( बिस्सों की कुल देवी ) , पोकरण आशापुरा माता नाडोल , जालौर एवं सिवाना के चौहान शासको की कुलदेवी रही हैं । जालौर के सोनगरा चौहानों ने अपनी कुलदेवी का मन्दिर मोदराँ । ( जालौर ) में बनवाया था , यहाँ पर आशापुरा माताजी का महोदरी रूप है , इस रूप का वर्णन मार्कण्डेय पुराण में भी मिलता हैं । बिस्सों की कुलदेवी आशापुरा का मन्दिर पोकरण ( जैसलमेर ) में स्थित है । ऐसा माना जाता है कि बिस्सा कुलदीपक लूणभाणजी माताजी को कच्छ से यहाँ लाये थे। ( 1200 विक्रम संवत के आस पास ) यहाँ पर वर्ष में दो बार भाद्रपद शुक्ला दशमी एवं माघ शुक्ला दशमी को मेले भरते हैं । बिस्सा जाति के लोग मेहंदी नहीं लगाते हैं ।

1.सुन्धा माता, नारायणी माता, त्रिपुर सुन्दरी ( तुरताई माता ) (sundha mata, narayani mata, tripura sundari (turatai mata)


2.शिला देवी, शीतला माता (शील माता) (shila devi, shitala mata(shil mata)


3.आमजा माता, कुशाला माता, हर्षद माता, बीजासण माता,वीरातरा माता (aamaja mata, kushala mata, harshad mata, bijasan mata, veeratra mata)


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