सुन्धा माता (sundha mata)

जालोर जिले में जसवंतपुरा के निकट सुन्धा पर्वत पर चामुण्डा माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है , जिसे सुन्धा माता भी कहा जाता है । मुहता नैणसी के अनुसार इस मंदिर का निर्माण जालौर के चौहान राज चाचिगदेव ने 1255 ई . में करवाया । यहाँ पर देवी के सिर की पूजा की जाती है ।
इसी कारण सुन्धा माता ‘ अघटेश्वरी ‘ कहलायी ।
1.शिला देवी, शीतला माता (शील माता) (shila devi, shitala mata(shil mata)
नारायणी माता (narayani mata)
सेन ( नाई ) समाज की आराध्य देवी नारायणी माता का मूल नाम ‘ करमेती बाई ‘ था । इनका जन्म मोरा ( जयपुर ) निवासी विजयराम सेन के यहाँ हुआ था तथा विवाह राजोरगढ़ ( अलवर ) के करमसी के साथ हुआ था ।ऐसा माना जाता है कि एक बार ‘ करमेती बाई ‘ अपने पति करमसी के साथ पीहर से ससुराल जा रही थी , तभी रास्ते में बरवा हुँगरी के निकट सर्पदंश से इनके पति की मृत्यु हो गई थी। करमेती बाई ने एक मीणा चरवाहे के सहयोग से लकड़ियाँ इकट्ठी की तथा पति के शव के साथ सती हो गई थी।
तभी से नारायणी माता ‘ नाई एवं मीणा समाज में आराध्य देवी हैं ।
नारायणी माता का प्रसिद्ध धाम (मन्दिर) अलवर जिले की राजगढ़ तहसील में बरवा डूंगरी पर उपलब्ध है ।
यहाँ पर 11वीं सदी का प्रतिहार शैली का मन्दिर बना हुआ है ।
1.आमजा माता, कुशाला माता, हर्षद माता, बीजासण माता,वीरातरा माता (aamaja mata, kushala mata, harshad mata, bijasan mata, veeratra mata)
त्रिपुर सुन्दरी ( तुरताई माता ) (tripura sundari (turatai mata)
वागड़ क्षेत्र की आराध्य देवी शक्तिरूपा ‘ त्रिपुर सुन्दरी ‘ का मन्दिर बाँसवाड़ा से 18 किमी . दूर तलवाड़ा गाँव में उपस्थित है । मन्दिर में काले पत्थर की सिंह पर सवार देवी की अष्टादशभुजी प्रतिमा स्थापित है। त्रिपुर सुन्दरी को ‘ तुरताई माता ‘ , एवं त्रिपुरा महालक्ष्मी ‘ के नामों से भी जाना जाता है । इस मन्दिर को भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है । सम्राट कनिष्क के शासनकाल में भी यह शक्तिपीठ था ।
पाँचाल जाति के लोग ‘ त्रिपुर सुन्दरी ‘ को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं ।
1.मेहाजी, तल्लीनाथ जी (mehaji, tallinath ji)
2.मामाजी, देव बाबा, वीर बिग्गाजी (mamaji, dev baba, veer biggaji)
3.भूरिया बाबा गौतमेश्वर, हरिराम बाबा, इंगजी – जवारजी (bhuriya baba gotameswer, hariram baba, engaji – javaraji)