बूंदी के हाड़ा चौहान (bundi ke hadha chohan)
साम्राज्य बूंदी के हाड़ा चौहान का संस्थापक देवा ( देवसिंह ) माना जाता है । देवा नाडोल शाखा के चौहानों का वंशज एवं मेवाड़ के बम्बावदा गाँव का सामंत था , जिसने 1241 ई . में मीणाओं को पराजित करके बूंदी में हाड़ा साम्राज्य की शुरुआत की । देवा का पुत्र समरसिंह महत्त्वाकांक्षी शासक था , जिसने कोटिया भील से संघर्ष किया । समरसिंह के पुत्र जैत्रसिंह ने 1274 ई . में कोटिया भील को पराजित करके उसका साम्राज्य बूंदी में मिला दिया । मेवाड़ के महाराणा क्षेत्रसिंह ने बूंदी के शासक को हराकर इसका विलय मेवाड़ में कर दिया
तब से लगाकर 1569 ई . तक बूंदी मेवाड़ साम्राज्य के अधीन एक परगना रहा ।
1569 ई . में बूंदी के शासक राव सुरजन हाड़ा ने अकबर से संधि करके मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली
तथा बूंदी मेवाड़ के आधिपत्य से मुक्त होकर मुगलों के अधीन आ गया ।
राव सुरजन हाड़ा (rav surajana hadha)
बूंदी के राव सुरजन हाड़ा ने 1569 ईस्वी में मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी ।
सुरजन हाड़ा अपनी दानशीलता के लिये बहुत प्रसिद्ध था ।
उसने द्वारकापुरी ( गुजरात ) में रणछोड़जी का मंदिर बनवाया । उसी के समय चन्द्रशेखर ने ‘ सुर्जन चरित्र ‘ की रचना की । जितना साम्राज्य विस्तार उसने किया उतना अन्य किसी हाड़ा नरेश ने नहीं किया ।
1585 ईस्वी में उसकी मृत्यु काशी में हो गयी ।
राव भोज (rav bhoj) ( 1585 – 1607 ई . )
सुरजन हाड़ा की मृत्यु के बाद 1585 ईस्वी में उसका दूसरा पुत्र राव भोज बूंदी का शासक बना ।उसने अकबर के समय मुगलों की बड़ी सेवा की ।
राव रतन (rav ratan) ( 1607 – 1621 ई . )
राव भोज के बाद राव रतन बूंदी का शासक बना । उसे ‘ सरबुन्दराय ‘ और ‘ रामराज ‘ की उपाधियाँ दी गयीं । वह बहुत ही न्यायप्रिय राजा था ।
1.सवाई जयसिंह-दितीय, औरंगजेब (savai jaisingh-ditiya, oragjeb)
राव शत्रुशाल हाड़ा (rav shatrushala hadha) ( 1621 – 1658 ई . )
मुगल अभियानों में उसने अपूर्व वीरता का परिचय दिया ।
उत्तराधिकार के युद्ध में वह साभूगढ़ के युद्ध में शाही फौजों के साथ रहकर औरंगजेब के विरुद्ध लड़ा था ।
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