महाराणा अमरसिंह प्रथम (maharana amarsingh partham)(1597 – 1620 ई.)
महाराणा प्रताप के मृत्युपरांत 19 जनवरी , 1597 को चावण्ड में महाराणा अमरसिंह प्रथम का राज्याभिषेक किया गया ।
अमरसिंह के विरुद्ध 1599 ई . को अकबर ने शहजादे सलीम ( जहाँगीर ) को भेजा । आरामपसंद सलीम ने कोई रुचि नहीं दिखाई । अतः अकबर अपने जीवन काल में मेवाड़ को अधीन नहीं कर सका । बादशाह बनने के बाद जहाँगीर मेवाड़ को अधीन करने के इरादे से अजमेर पहुँचा और शहजादे खुर्रम को मेवाड़ अभियान पर भेजा । मेवाड़ की जर्जर अवस्था तथा सरदारों व राजकुमार कर्णसिंह के आग्रह पर अपनी इच्छा के विरुद्ध अमरसिंह ने 5 फरवरी , 1615 को खुर्रम से संधि कर ली । 5 फरवरी , 1615 को महाराणा अमरसिंह अपने दो भाइयों सहसमल्ल और कल्याण तथा तीन कुँवरों भीमसिंह , सुरजमल और बाघसिंह सहित कई सरदारों को लेकर गोगुन्दे के थाने पर शहजादा खुर्रम से मिलने गया ।
दोनों पक्षों में हुई संधि के अनुसार यह निश्चित हुआ कि महाराणा बादशाह के दरबार में कभी उपस्थित नहीं होगा , उसके स्थान पर उसका ज्येष्ठ कुँवर शाही दरबार में जायेगा । शाही सेना में महाराणा 1000 सवार रखेगा । चित्तौड़ के किले की मरम्मत नहीं की जायेगी । इस प्रकार गुहिल के लगभग 1050 वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का अंत हुआ ।
19 फरवरी , 1615 को कुँवर कर्णसिंह को लेकर शहजादा खुर्रम दलबल सहित बादशाह के दरबार में उपस्थित हुआ ।
26 जनवरी , 1620 को उदयपुर में महाराणा अमरसिंह की मृत्यु हो गई ।
महाराणा की अंत्येष्टि आहड़ में गंगोदभव के निकट हुई ।
आहड़ की महासतियों में सबसे पहली छतरी महाराणा अरमसिंह की है ।
2.शक्तिकुमार, वैरिसिंह, विक्रमसिंह, जैत्रसिंह (shaktikumar, verisingh, vikramsingh, jetrasingh)
महाराणा कर्णसिंह (mahrana karnsingh) (1620 – 1628 ई.)
महाराणा कर्णसिंह का राज्याभिषेक 26 जनवरी , 1620 को हुआ ।
बादशाह जहाँगीर के विरुद्ध शहजादे खुर्रम (शाहजहाँ) ने विद्रोह करके महाराणा कर्णसिंह के यहाँ शरण ली । कर्णसिंह । ने उसे कुछ दिन दिलवाड़ा जैन मंदिर ( आबू ) और तत्पश्चात जगमंदिर निवास (पिछोला झील में स्थित महल) में ठहराया ।
1.राणा हम्मीर, महाराणा मोकल, महाराणा मोकल (rana hammir, maharana mokal, maharana mokal)
2.महाराणा रायमल, महाराणा सांगा (maharana raymal, maharana sanga)
3.महाराणा सांगा व इब्राहीम लोदी (maharana sanga v ebrahim lodi)1