आमेर का शिलालेख, amer ka shilalekh1612 ईं)

इस आमेर का शिलालेख संस्कृत भाषा एवं नागरी लिपि में है इसमें आमेर के कछवाहा राजवंश के शासक – पृथ्वीराज ,भारमल ,भगवंतदास, और मानसिंह का उल्लेख किया गया है इस लेख में कछुआ शासकों को ‘रघुवंश तिलक’ कहा जाता है मानसिंह द्वारा जमुआ रामगढ़ दुर्ग के निर्माण का भी उल्लेख इसमें उपस्थित हैं |
मुगल, राजपूताना के कार्य कलाप (mugal, rajputana ke kary klap)
रणकपुर प्रशस्ति, कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति, ranakpur prashasti, kirti stambh prashasti 1339 ईं
रणकपुर (पाली) के ‘चौमुखा मंदिर’ के एक स्तंभ में लगे हुए पत्थर में लिखा हुआ
शिलालेख संस्कृत भाषा तथा नागरी लिपि में है इसमें मेवाड़ के शासक बप्पा से लेकर कुंभा तक के शासकों का उल्लेख मिलता है
कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति, kirti stambh prashasti 1460 ईं
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित कीर्ति – स्तंभ कि कहीं से शिलाओं पर उत्कीर्ण लोग सामूहिक रूप से कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति कहलाते हैं वर्तमान में केवल 2 शिलाएं ही मौजूद हैं शेष सभी नष्ट हो गई है इसमें महाराणा कुंभा को दी गई दानगुरु , राजगुरु और शैलगुरु इत्यादि उपाधियों एवं लेखन का उल्लेख हुआ है
गोठ मांगलोद का शिलालेख, अपराजित का शिलालेख, goth manglod ka shilalekh, aprajit ka shilalekh 1608 ईं
नागौर जिले के गोठ मांगलोद गांव में स्थित दधिमती माता के मंदिर से उत्तीर्ण सभी लेख को 608 ई. का माना जाता है पंचायत रामकरण आसोपा के अनुसार इस शिलालेख पर गुप्त संवत की तिथि संवत्सर सतेषु 289 श्रावण बदी 13 अंकित है
अपराजित का शिलालेख, aprajit ka shilalekh 1661 ईं
इस शिलालेख नागदा गांव (उदयपुर) के निकट कुंडेश्वर के मंदिर की दीवार पर अंकित है
इसमें सातवीं शताब्दी में मेवाड़ की धार्मिक स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त होती हैं|
फारसी शिलालेख, ताम्रपत्र शिलालेख (pharsi shilalekh, tamrpatr shilalekh)
मण्डोर का शिलालेख, मान मोरी का शिलालेख, mandore ka shilalekh, man mori ka shilalekh 1685 ईं
यह शिलालेख जोधपुर के निकट मण्डोर के पहाड़ी ढाल में एक बावड़ी में खुदा हुआ है इस लेख से ज्ञात होता है कि उस समय विष्णु तथा शिव की उपासना प्रचलित थी
इस लेख से ज्ञात होता है कि उस समय विष्णु तथा शिव की उपासना प्रचलित थी
अन्य पुरालेखीय स्रोत (anye puralekhiy sarot)
मान मोरी का शिलालेख, man mori ka shilalekh, 8 वीं सदी
यह शिलालेख चित्तौड़ के निकट मानसरोवर झील के तट पर एक स्तंभ पर उत्कीर्ण था
इसकी खोज कर्नल टॉड ने की थी बाद में इसे इंग्लैंड ले जाते समय कर्नल टॉड ने समुद्र में फेंक दिया था इस लेख से उस समय के राजाओं द्वारा लिए जाने वाले करो , युद्ध में हाथियों के प्रयोग , शत्रुओं को बंदी बनाए जाने तथा उनकी स्त्रियों की देखभाल की उचित व्यवस्था किए जाने के बारे में जानकारी दी गई है