राजस्थान का प्राचीन इतिहास, rajasthan ka prachin itihas

प्रदेश में राजस्थान का प्राचीन इतिहास कुरू , मत्स्य पदवेस्तार का कूरू रसेन – में अलवर ऊन राज्य में अलवर के दौड पंचम भाड रसेन राज्य के , मत्स्य में अलवर – भरतपुर क्षेत्र का पूजों भरा सम्मिलित झाकुरूर राधा इन्द्रप्रस्थ , मत्स्य को दैराठ सूरसेन जो मधुरः कालान्तर में अलवर में ज्ञात्व जनपद , भरतपुर में जन् अलवर में मद जनपद भी स्थापित हुए ।
उदयपुर राज्य के प्राचीन नाम शिविधा उसको राजधानी मार्मिक या माध्यमिका ( नगरी )कहाँ जाता हैं।
वर्तमान चित्तौड़ में से 7 मील उत्तर में स्थित है । इस क्षेत्र के मेदाट , प्राग्वाट के नाम से भी जाना जाता था।
मारवाड़ क्षेत्र को मरु , तदन्तर मरुवार तथा अन्त में मारवाड़ के नाम सें जानने लगा ।
मंडोर के दक्षिण में स्थित क्षेत्र को पुत्र कहा जाता था ।
जनपद दुर्ग में क्षेत्र की संस्कृति का बौद्ध धर्म में अमेट छः प्रमुख धर्म है
दैराठ , भीम , गरी , सांभर , नगर , नगरी आदि
उत्खनन से राज्य में ब्राह्मण एवं बौद्ध धर्म के मिलते हैं ।
मथुरा मानमोरी का शिलालेख (mathura manmori ka shilalekh)
जनपद दुर्ग, janpad durg
जनपद दुर्ग में भरतपुर का राजन्य एवं मत्स्य जनपद , नगरो शिवि जनपद तथा अलवर क्षेत्र का शाल्व जनद महत्वपूर्ण में 5 मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर ( अलवर ) दो जहाँ पर पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के सम्द विजय बनाया ।
तथा तीसरी शताब्दी से ईसा की चौथी शताब्दी के राज्य में मालव , अर्जुनायन एवं यौधेय राजवंशों को भुला के प्रमाण मिलते हैं ।
मालव शक्ति का प्रमुख केन्द्र जयपुर के निकट ‘ नगर ‘ था ।
कालान्तर में ये लोग टोंक , अजमेर एवं मेवाड़ क्षेत्र में फैले हुए हैं ।
भरतपुर – अलवर क्षेत्र के अर्जुनायन ‘ अपनी विजयों के लिए इतिहास में प्रसिद्ध हैं ।
इनकी मुद्राओं पर ‘ अर्जुनायनानां जय। अंकित मिलता है ।
राजस्थान के उत्तरी भाग ( वर्तमान श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिले ) में यौद्धेय जाति का राज उपलब्ध था जिन्होंने कुषाणों को इस क्षेत्र से खदेड़ा था ।
इनका सबसे प्रतापी शासक ‘ कुमारनामी ‘ हुआ था ।
मौर्यकाल में लगभग पूरे राज्य पर चंद्रगुप्त मौर्य का शासक था ।
कोटा के निकट प्राप्त कणसवा शिलालेख के अनुसार यहाँ मत्स्य मौर्य शासक धवल का साम्राज्य था ।
राज्य मेवाड़ के तत्कालीन शासक मानमौर्य ( मानमोरी ) को पराजित – राज्य करके बप्पा रावल ने गुहिल वंश के साम्राज्य की स्थापना की थी |
2.महाराजा अजीतसिंह, वीर दुर्गादास राठौड़ (maharaja ajitsigh, veer durgadhas rathor) (1707-1724 ई.)
3.आऊवा का जम्मर( पुरुषों का जौहर) aahuva ka jammar(puruso ka johar)
4.राजस्थान के परमार राजवंश – आबू, जालौर, मालवा, किराडु, वागड़ के परमार (rajasthan ke parmar rajvansh – aabu, jallor, malva, kiradu, ke parmar)