मुगल दरबार के कार्य कलाप, राजपूताना दरबार के कार्य कलाप, mughal darbar ke karya klap, rajputana darbar ke karya klap
दस्तूर कौमवार जयपुर राजस्थान के मुगल दरबार अभिलेखों की महत्वपूर्ण अभिलेख श्रंखला है |जिनसे जयपुर रियासत की सामाजिक आर्थिक राजनीतिक और धार्मिक स्थिति की जानकारी मिलती है , दस्तूर ,फारसी शब्द है जिसका अर्थ है रीती नियम विधि रहस्य खोज तथा कायदा और कौम का अर्थ है जाति है दस्तूर कौमवार जयपुर रियासत की विभिन्न जातियों उनके सामाजिक राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति तथा उत्सव आदि के संबंध में जानकारी उपलब्ध करवाते है|वह पत्र जो एक राजा दूसरे राजा को भेजते थे खरीता कहलाते थे यहां प्राप्त पत्रों से जयपुर के शासकों की नीति उनका मुगलों से संबंध उनके गुप्त संबंधियों आदि के बारे में जानकारी मिलती है|
वह पत्र जो राजा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को भेजने थे उन्हें परवाना कहते हैं|
मुगल दरबार में प्रकाशित दैनिक समाचारों का संग्रह जिनसे राजपूताना के विभिन्न राज्यों के शासकों के कार्य कलापओं की जानकारी मिलती हैं अखबारात कहलाते थे |राजा द्वारा शाही वंश के लोगों के नाम मनुष्य दालों के नाम या विदेशी शासकों के नाम भेजे जाने वाले पत्र रुक्के कहलाते थे|
फारसी शिलालेख, ताम्रपत्र शिलालेख (pharsi shilalekh, tamrpatr shilalekh)
अन्य पुरालेखीय स्रोत (anye puralekhiy sarot)
मुगल दरबार में होने वाली घटना, mughal darbar me hone wali ghatna
मुगल दरबार में होने वाली घटनाओं की जानकारी देने के लिए जयपुर के राजाओं द्वारा नियुक्ति अधिकारी के पत्र वकील रिपोर्टर कहलाते हैं|राजा के दैनिक कार्यों के संचालन के लिए विभिन्न कार्य के लिए विभिन्न बाहियों थी जैसे- राजाओं की दिनचर्या के लिए हकीकत वही राज परिवार से संबंधित विभाग खर्च के लिए विवाह संबंधित वही राजा के साथ के आदेशों की नकल के लिए हुकूमत री बाई राजा को प्राप्त होने वाले महत्वपूर्ण पत्रों की नकल के लिए खरीता बाही राजकीय प्रसादों एवं भवनों के लिए निर्माण पर होने वाले खर्च के लिए कमठाना बही ,राज परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति वाली वस्तुओं के लिए सिया सियाह हजूर ,पदाधिकारियों के नाम एवं जातिगत विवरण के लिए दस्तूर कोमवारआदि|
शासकों की आज्ञाएँ, राजा द्वारा शासकों , सामंतों तथा अन्य अधिकारियों को भेजे जाने वाले पत्रों की नकल आदि का उल्लेख जिसमें किया उसे तलकी कहा जाता था|वह बहियों है जिनमें 3 से 10 वर्ष तक आय-व्यय का ब्यौरा लिखा हुआ था यह राज्यों की आय – परगनों व गांव की आर्थिक स्थिति युद्ध अभियान वेतन आदि का बोध कराती थी मुल्की कहलाती थी|
जो पत्र राजस्थान की आर्थिक स्थिति की पर्याप्त जानकारी उपलब्ध कराते हैं वह जमाबंदी कहलाते हैं|
दैनिक प्रशासन. युद्ध प्रशासन आदि का उल्लेख किया जाता था उसे दो वर्का कहलाता है|
मेवाड़ राजस्थान के वार्षिक आय-व्यय का ज्ञान जिन अभिलेखों से होता है|
उन्हें पड़ा का अथवा खाता के नाम से जाना जाता है इनमें लगान, शहर ,पट्टा, (बिक्रीकर),जागीरों से प्राप्त
राशि, पुलिस ,सैनिक- संगठन, प्रशासनिक तंत्र और न्यायपालिका पर होने वाले खर्च का उल्लेख प्राप्त होता है|
2.फारसी साहित्य, हुमायूँनामा साहित्य (pharasi sahity – humayunama sahity)
3.ऐतिहासिक साहित्य पृथ्वीराज विजय (etihasik sahitye prthaviraj vijay)