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महाराजा गजसिंह प्रथम, वीर अमरसिंह राठौड़, महाराजा जसवंत सिंह प्रथम, maharaja gajsingh pratham, veer amar singh rathore, maharaja jaswant singh pratham

महाराजा गजसिंह प्रथम, maharaja gajsingh pratham 1619-1638 ई

महाराजा गजसिंह प्रथम
महाराजा गजसिंह प्रथम

शूरसिंह के पुत्र महाराजा गजसिंह प्रथम 8 अक्टूबर , 1619 ई . में जोधपुर के शासक बने गजसिंह का राज्याभिषेक बुरहानपुर ( महाराष्ट्र ) में हुआ था । दक्षिण विजय के उपरान्त जहाँगीर ने उन्हें दलथुमन ‘ की उपाधि दी व इनके घोड़ों को शाही दाग ‘ से मुक्त किया ।गजसिंह की मृत्यु आगरा में 1638 ई . में हुई । इनकी छतरी यहाँ पर यमुना नदी के किनारे बनी हुई है ।

महाराजा गजसिंह ने अपने जीवनकाल में 52 छोटे-बडे़ युद्ध में भाग लिया । प्रत्येक युद्ध में वे सेना के अग्रभाग ( हरावल ) के सेनापति रहे । उनकी सैन्य टुकड़ी में कई राठौड़ योद्धा थे । उनके साथ लखमीदान वणसूर नामक चारण कवि – योद्धा ने कई युद्धों में भाग लिया था ।


महाराजा अजीतसिंह, वीर दुर्गादास राठौड़ (maharaja ajitsigh, veer durgadhas rathor) (1707-1724 ई.)

वीर अमरसिंह राठौड़, veer amar singh rathore

गजसिंह के तीन पुत्र थे इनमें सबसे बड़ा अमरसिंह राठौड़ बड़ा साहसी , स्वाभिमानी और स्वातन्त्र्य प्रिय था लेकिन अपने दृढ़ता । पत्र जसवंतसिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया इससे नाराज होकर अमरसिंह शाहजहाँ की सेवा में चला गया । एक बार शाहजहाँ के बख्शी द्वारा गंवार कहे जाने पर स्वाभिमानी अमरसिंह ने उसका सिर काट दिया और स्वयं घोड़े सहित दीवार से कुद गये । अमरसिंह के इस अद्भुत साहस को ‘ ख्याल बनाकर मारवाड़ के गाँव – गाँव में गाया जाता है । अमरसिंह की 1644 ई . में बीकानेर राज्य के खीलवा गाँव और नागौर के सम्बन्ध में हुई

लड़ाई ‘ मतीरे की राड़ ‘ के नाम से प्रसिद्ध है ।


आऊवा का जम्मर( पुरुषों का जौहर) aahuva ka jammar(puruso ka johar)

महाराजा जसवंत सिंह प्रथम, maharaja jaswant singh pratham 1638 – 1678 ई .

महाराजा गजसिंह प्रथम के पुत्र जसवंत सिंह का 1638 ई . में आगरा में अहमदाबाद राजतिलक किया गया । शाहजहाँ ने इन्हें ‘ महाराजा ‘ की उपाधि दी । शाहजहाँ के पुत्रों के उत्तराधिकार संघर्ष में जसवंत सिंह ने दारा शिकोह के पक्ष में ‘ धरमत ‘ ( उज्जैन ) के युद्ध में शाही सेना का नेतृत्व किया जिसमें औरंगजेब विजयी रहा । पुनः दौराई ( अजमेर ) के युद्ध ( 11 मार्च , 1658 ई . ) में । औरंगजेब ने दारा शिकोह को शिकस्त दी थी ।

धरमत के युद्ध के दौरान दारा शिकोह के पक्ष के कुछ सलमान धोखा देकर औरंगजेब के पक्ष में जा मिले इस कारण जसवंतसिंह युद्ध मैदान छोडकर जोधपर लौट आये । यह खबर जब उसकी रानी जसवंतदे को लगी तो उसने किले का दरवाजा खोलने से मना करते हए अपने सेवक से संदेश भिजवाया – “ राजपूत युद्ध से या तो विजय होकर लौटते हैं या वहीं पर मर मिटते हैं ।

युद्ध क्षेत्र से भागकर आने वाला व्यक्ति उसका पति नहीं हो सकता यह तो कोई ओर ही है ।

” जसवंत सिंह द्वारा पराजय का बदला लेने का वचन देने के बाद ही उसने दरवाजे खुलवाये थे।

महाराजा जसवंतसिंह ने भाषाभूषण , आनंद विलास , अनुभव प्रकाश , अपरोक्ष सिद्धान्त , सिद्धान्त बोध तथा सिद्धान्त सार नामक अनेक ग्रंथ लिखे ।


नागभट्ट द्वितीय, भोजदेव प्रतिहार, राजोगढ़ के गुर्जर प्रतिहार (nagbhat divatiye, bhojdev pratihar, rajogadh ke gujar pratihar )

औरंगजेब ने दिल्ली का सुल्तान बनने के बाद, oragjeb ne dehli ka sultan banne ke bad

औरंगजेब ने दिल्ली का सुल्तान बनने के बाद जसंवत सिंह को सर्वप्रथम दक्षिण अभियान तत्पश्चात् काबुल अभियान पर भेजा जहां उनकी मृत्यु हो गई जसवंतसिंह की मृत्यु के उपरांत उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होने के कारण जोधपुर राज्य को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया है। जसवंत सिंह के दरबारी महणोत नैणसी ने ‘ मारवाड़े के परगने री विगत व मुहणोत नैणसी री ख्यात नामक ग्रंथ लिखे गये। राजपूताने का अबुल फजल के नाम से प्रसिद्ध मुहणोत नैणसी के अंतिम दिन जेल में बीते थे। 

महाराजा जसवंतसिंह ने औरंगाबाद के निकट जसवंतपुरा आबाद किया ।

और आगरा के निकट राजपूत मुगल शैली पर आधारित कचहरी भवन बनवाया|

1.जालौर, उज्जैन, कन्नौज और वत्सराज प्रतिहार (jalore, ujjain, kannauj or watsaraj pratihar)


2.मण्डोर के प्रतिहार राजवश (mandhor ke partihar rajvansh)


3.राजस्थान के प्रमुख राजवंश – अग्निकुण्ड, ब्राह्मण, सूर्य व चन्द्रवंशी राजवंश (rajasthan ke pramuk rajvansh – agnikund, bhrahamn, surye v chandravanshi rajvansh)


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