राजस्थान के परमार राजवंश (rajasthan ke parmar rajvansh) :-
राजस्थान के परमार राजवंश ‘ शब्द का अर्थ ‘ शत्रु को मारने वाला होता है । राजस्थान के परमार राजवंश की शक्ति का प्रारम्भिक स्थल आबू था
तत्पश्चाः इनके साम्राज्य जालोर , किराडू , ओसिया , मालवा एवं वागड़ क्षेत्र में स्थापित हुए ।
आबू के परमार(aabu ke parmar) –
० राजस्थान के परमार राजवंश में आबू के परमारों का आदि पुरुष धुमराज , उत्पलराज का वंशज था ।
– प्रारम्भ में इनको निकटवर्ती सोलंकियों से संघर्ष । करना पड़ा , अंततः मिलाप हो गया ।
– गुजरात के सोलंकी राजा मूलराज ने दसवीं शताब्दी में आबू के शासक धरणी वराह परमार पर आक्रमण किया ।
जालौर, उज्जैन, कन्नौज और वत्सराज प्रतिहार (jalore, ujjain, kannauj or watsaraj pratihar)
भीमदेव सोलंकी (bhimdev solanki)
– भीमदेव सोलंकी ने आबू के राजा धंधुक परमार पर आक्रमण करके जीत प्राप्त की , तत्पश्चात भीमदेव एवं धंधुक में मेल हो गया ।
– विमलशाह ने 1031 ई . में आबू के दिलवाड़ा गाँव में भगवान आदिनाथ का मंदिर ( विमलवसाहि मंदिर ) का निर्माण करवाया।
– धंधुक के पश्चात् कृष्णदेव एवं विक्रमसिंह आबू के महत्त्वपूर्ण परमार शासक हुए , इनका वर्णन कुमार पाल प्रबंध में मिलता है
– विक्रम का प्रपौत्र ‘ धारावर्ष ‘ एक प्रतापी शासक हुआ । उसने 60 वर्ष तक आबू पर राज किया तथा सोलंकियों से मधुर सम्बन्ध बनाए रखे । धारावर्ष पराक्रमी एवं वीर था , इसका प्रमाण अचलेश्वर महादेव ( आबू पर्वत ) के मंदाकिनी कुण्ड पर बनी हुई उसकी मूर्ति एवं समान रेखा में आर पार छिद्रित तीन भैसों की मूर्तियाँ का निर्माण हैं । धारावर्ष का अनुज प्रहलाद ने वीर एवं विद्वान था । कवि सोमेश्वर द्वारा रचित ‘ कीर्ति कौमुदी ‘ एवं ‘ लूणवशाही मंदिर की प्रशस्ति ‘ में उसके गुणों की श्लाघा की गई है । प्रहलादन देव ने ‘ प्रहलादनपुर नगर ‘ ( वर्तमान पालनपुर , गुजरात ) की स्थापना की तथा , ‘ पार्थ पराक्रम व्यायोग ‘ नामक नाटक की रचना हुई थी धारावर्ष के पुत्र सोमसिंह के शासनकाल में आबू के दिलवाड़ा गाँव में वास्तुपाल एवं तेजपाल द्वारा भगवान नेमिनाथ का मंदिर ( लूणवशाही मंदिर ) बनवाया गया ।
– प्रतापसिंह परमार ने मेवाड़ के जैत्रसिंह को हराकर चन्द्रावती पर अधिकार कर लिया |
– 1311 ई . में लुम्बा चौहान ने परमारों को हराकर चन्द्रावती को प्राप्त कर लिया , यहीं से आबू में परमार राज्य का अंत हुआ तथा देवड़ा चौहानों के साम्राज्य की स्थापना हुई ।
मण्डोर के प्रतिहार राजवश (mandhor ke partihar rajvansh)
जालौर के परमार(jalor ke parmar)
– आबू के परमारों की शाखा में वाकपतिराज , चन्दनदेवराज , अपराजित , विज्जल , धारावर्ष एवं विसल नामक राजा । जालोर में हुए ।
– वाकपतिराज का शासनकाल 960 – 985 ई . तक मिलता है । जालोर के वर्तमान दुर्ग का निर्माण परमारी ने करवाया ।
किराडु के परमार(kiradu ke parmar)
– किराडू ( बाड़मेर ) के शिवालय पर उत्कीर्ण 1661 ई . के एक शिलालेख से यहाँ के शासकों कृष्णराज , सोच्छराज , उदयराज एवं सोमेश्वर के नाम ज्ञात हुए हैं ।
मालवा के परमार (malwa ke parmar)
– आबू के परमारों की मालवा शाखा की सातवीं पीढ़ी में मुंज नामक प्रतापी शासक हुआ
– मुंज के पश्चात सिन्धुराज एव भोज परमार ( राजा भोज ) हुए ।
-राजा भोज के दरबार में वल्लभ , मेरूतुंग , वररुचि , सुबन्धु , अमर , राजशेखर , राजा भोज परमार ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण का विशाल मंदिर बनवाया ।
– राजा भोज स्वयं एक विद्वान एवं कवि था , जिसने सरस्वती कंठाभरण , राजमृगांक , विद्वज्जन मण्डल , समरांगण , श्रृंगार मंजरी कथा एवं कूर्म शतक नामक ग्रंथ लिखे थे।
राजस्थान के प्रतिहार राजवश (rajasthan ke partihar rajvansh)
वागड़ के परमार(vagadh ke parmar)-
– मालवा शाखा के डम्बरसिंह ने वागड़ में परमार साम्राज्य की नींव डाली । इसी क्रम में कंकदेव , सत्यराज , मण्डलीक एवं विजयराज महत्त्वपूर्ण राजा हुए थें। वागड़ के परमारों की राजधानी उत्थूणक ( अरथुना , बाँसवाड़ा ) थी । यहाँ पर अनेक शैव , वैष्णव , शाक्त एवं जैन देवालियों के खंडहर मिलते हैं जो स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं
3.राजस्थान के प्रमुख राजवंश – अग्निकुण्ड, ब्राह्मण, सूर्य व चन्द्रवंशी राजवंश (rajasthan ke pramuk rajvansh – agnikund, bhrahamn, surye v chandravanshi rajvansh)