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फारसी शिलालेख, ताम्रपत्र शिलालेख, farsi shilalekh, tamrapatra shilalekha

 फारसी शिलालेख, farsi shilalekh

फारसी शिलालेख
फारसी शिलालेख

नागौर ,सांभर, जालौर, जयपुर ,सांचौर, अलवर, मेड़ता, अजमेर, कोटा, टोंक आदि क्षेत्रों में फारसी भाषा में लिखा कहीं शिलालेख मिलते हैं सबसे पुराना फारसी शिलालेख अजमेर में ‘ढाई दिन के झोपड़े’ की दीवार के पीछे लगा हुआ है (1200 ईं) धाईबी पीर की दरगाह (चित्तौड़गढ़) मैं प्राप्त लेख पर चित्तौड़ का नाम (खिज्राबाद) अंकित हैं (1325 ईं)

जहांँगीरी महल के लेख से अमर सिंह पर जहांगीर की विजय का विवरण मिलता है (1615 ईं)

शाहाबाद लेख (1679 ईस्वी) से औरंगजेब के समय वसूल किए जाने वाले विविध करो की जानकारी मिलती है

तारागढ़ की ,सैय्यद हुसैन की दरगाह के लेख (1813 ईं) से मराठों की धार्मिक ,सहिष्णुता का पता चलता है

कन्सव (कोटा) वह पुठोली (चित्तौड़गढ़) के शिलालेख में मौर्य शासन काल की जानकारी उपयुक्त मिलती है
[21:49, 12/7/2018] mahendrachoudhary2417: (2). सिक्के
अजमेर के चौहान शासकों के 11वीं से 13वीं सदी के चांदी में तांबे के सिक्के मिलते हैं शिलालेखों में चौहानों के सिक्कों के लिए द्रम्म ,विंशोपन ,रूपक, दीनार आदि नामों का प्रयोग किया गया है

पृथ्वीराज चौहान के समय का एक सिक्का मिलता है जो 1192 ईसवी का पर्याप्त है इसके एक तरफ मोहम्मद बिन शाम तथा दूसरी तरफ पृथ्वीराज अंकित हैं इसके आधार पर कई विद्वान यह मानते हैं कि तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज को मोहम्मद गोरी नहीं ले गया था

महाराणा कुंभा के सिक्कों पर कुंभकर्ण कुंबल मेरु इत्यादि शब्द अंकित है

अकबर की चित्तौड़ विजय के बाद मेवाड़ में मुगल सिक्के एलजी चलने लगे थे


अन्य पुरालेखीय स्रोत (anye puralekhiy sarot)


राजस्थानी साहित्य – रासौ, ख्यात, पद्मावत साहित्य, कान्हड़दे प्रबंध (rajasthani sahity – raso, khiyat, padhmavat sahity, kanhddev parbandh)

ताम्रपत्र शिलालेख, tamrapatra shilalekha

राजा ,महाराजा, रानियों ,सामंतों,जागीदारो एवं समर्थ लोगों द्वारा दान पुण्य के लिए भूमि का अनुदान दिया जाता था जिससे स्थानीय अनुदानों को ताम्र चद्दर पर उत्कीर्ण करवाया जाता था जिसे ताम्र पत्र कहते हैं आहाड़ के ताम्र पत्र (1206 ईस्वी) मैं गुजरात के मूल राज्य से लेकर भीमदेव द्वितीय तक के सोलंकी राजाओं की वंशावली उपयुक्त हैं

वीरमसिंह देव के ताम्र पत्र (1287 ईं ) से वागड़ राजाओं का उल्लेख मिलता है

खेरोदा के ताम्रपत्र से (1437 ईसवी) एकलिंग जी में कुंभा के प्रायश्चित, प्रचलित मुद्रा एवं तत्कालीन धार्मिक स्थिति की जानकारी मिलती है

चिकली ताम्र पत्र (1423 ईस्वी) से किसानों से वसूल किए जाने वाले विविध लाख- बाघों का पता चलना अवश्य है

पुर के ताम्रपत्र (1535 ईसवी) में हाडी़ रानी कर्मावती के जोहर का उल्लेख उपस्थित है

1.फारसी साहित्य, हुमायूँनामा साहित्य (pharasi sahity – humayunama sahity)


2.ऐतिहासिक साहित्य पृथ्वीराज विजय (etihasik sahitye prthaviraj vijay)


3.सांस्कृतिक स्थापत्य एवं चित्रकला (sanskartik sthapatye avm chitrkala)


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