राजस्थान में जलवायु के आधार पर ऋतुओ को तीन भागों में बांटा गया है (rajasthan me jalvayu ke aadhar per rituye) :-

ग्रीष्म ऋतु, grishm ritu
राजस्थान में ग्रीष्म ऋतु का समय मार्च से मध्य जून तक का माना जाता है इस ऋतु में सूर्य के उत्तरायण होने से तापक्रम में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है अप्रैल के महीने में सूर्य लम्बवत चमकता दिखाई देता है और हवाओ का प्रवाह गति पश्चिम से पूर्व की ओर चलने लगती है एवं पश्चिमी राजस्थान फलोदी, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर इत्यादि स्थानों पर तापमान 45 डिग्री से 50 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है |राजस्थान के इन क्षेत्रों में गर्मियों में वातावरण की शुष्कता, स्वच्छआकाश, वनस्पति के आभाव एवं मिट्टी की बलुई प्रकृति के कारण रात्रि में तापमान|
अचानक गिर जाने से राते सुहानी हो जाती हैं |
बलूचिस्तान के पठार से गर्मियां की ऋतु में उत्तरी एवं पश्चिमी राजस्थान में स्थानीय उष्ण पवनलू चलती हैं|
लू चलने से तापमान बढ़ जाता है |
जहां गर्मियों में अनेक स्थानों पर गर्म वायु भंवर रेत भरी आंधियों का रुप ले लेते हैं तथा इन आंधियों द्वारा वार्षिक संख्या से उत्तर से दक्षिण की ओर जाने से इनका प्रभाव कम हो जाता है तथा राज्य में सर्वाधिक आंधियां श्री गंगानगर जिले में वर्ष में27 दिन हनुमानगढ़ में 24 दिन बीकानेर में 15 दिन जैसलमेर में 12 दिन कोटा मैं 5 दिन जालवाडा में 3 दिन चलती रहती है|
तथा ग्रीष्म ऋतु में सापेक्षिक आर्द्रता 35 से60 प्रतिशततक की रहती है |
वर्षा ऋतु, varsha ritu
राज्य में वर्षा ऋतु का समय मध्य जून से सितंबर तक से प्रारंभ होता है तथा राजस्थान में मानसून का प्रवेश द्वार बांसवाड़ा जिला कहलाता है( 16 से 20 ) जून-माई के महीना मैं सिंध (पाकिस्तान ) एवं पश्चिमी राजस्थान में अत्यधिक गर्मी से बने निम्न वायुदाब के कारण हिंद महासागर मैं दक्षिणी पश्चिमी मानसून पवने को अपनी औरआकर्षित करती है इन मानसून द्वारा दोनों की दोनों शाखाओं (अरब सागरीय शाखा एवं बंगाल की खाड़ी की शाखा) के मार्ग से राजस्थान में प्रवेश करती हैं |बंगाल की खाड़ी में मानसून पवने गंगा यमुना का मैदान पार करके जब राजस्थान में प्रवेश करती है|
तो इनकी सांद्रता कम हो जाती है |
अतः अपने पूर्व दक्षिणी पूर्वी राजस्थान में कुछ वर्षा करती हैं|
लेकिन अरावली पर्वतमाला के बीच में आने के कारण यह हवाएं|
राज्य के उत्तरी पश्चिमी भाग में वर्षा नहीं कर पाती है |
अतः अपने पूर्व दक्षिणी पूर्वी राजस्थान में कुछ वर्षा करती हैं लेकिन अरावली पर्वतमाला के बीच में आने के कारण यह हवाएं राज्य के उत्तरी पश्चिमी भाग में वर्षा नहीं कर पाती है |
अरबसागरीय मानसून पवने अरावली पर्वतमाला के समानांतर चलने के कारण अवरोध के अभाव में वर्षा नहीं कर पाती है |
1.तराइन का द्धितीय युद्ध और पृथ्वीराज चौहान(tarain ka dvitiy yoddh or prathviraj chohan)
2.तराइन का प्रथम युद्ध और पृथ्वीराज तृतीय(tarain ka yuddh, prathviraj tratiy)
3.चौहान राजवंश के शासको, वासुदेव, विग्रहराज द्वितीय, अजयराज, अर्णोराज तथा विग्रहराज चतुर्थ(chohan rajavansh k shasako,vasudev,vigrahraj dhvitiy,ajeyraj,arnoraj tatha vigrahraj)