तराइन का द्धितीय युद्ध(tarain ka dusra yuddh)( 1192 ई . ) :-

शाहबुद्दीन गौरी अपनी पराजय को भूल न सका और पृथ्वीराज चौहान तृतीय से बदला लेने की योजना बनाने में जुट गया था । उसने अपनी सेना में तुर्क , ताजिक और अफगानों को सम्मिलित किया और उसे हथियारों से सुसज्जित् किया । उसने कन्नौज के राजा जयचन्द से भी संवाद बनाये रखा था वह 1,20,000 सेना लेकर वापस तराइन के मैदान में आ डटा था ।
पृथ्वीराज चौहान ने यह कहलवा दिया कि या तो वह वापस लौट जाये अन्यथा युद्ध स्थल में भेंट होगी ।
मुहम्मद गौरी ने उसे भुलावे में रखा और अपने दूत को भेजकर यह कहलवाया कि वह युद्ध नहीं संधि में विश्वास करता है । उसने एक दूत अपने भाई के पास भिजवाया है , जैसे ही गजनी से उसे संदेश प्राप्त होगी । वह वापस अपने मुल्क लौट जायेगा । पृथ्वीराज की सेना जो युद्ध स्थल में पहुँची , सन्धि वार्ता के भ्रम में अपने खेमे में रातभर आनंद मनाती रही ।जबकि मुहम्मद गौरी ने शत्रुओं को भ्रम में डालने के लिये युद्ध शिविर में रातभर आग जलाये रखी थी । ज्योंही सुबह हुई , राजपूत सैनिक शौचादि कार्यों के लिये बिखर गये तभी अचानक तुर्को ने उन पर आक्रमण कर दिया ।
अजमेर और दिल्ली पर तुर्को का अधिकार हो गया और चौहानों का पराभव हो गया था ।
1.तराइन का प्रथम युद्ध और पृथ्वीराज तृतीय(tarain ka yuddh, prathviraj tratiy)
2.जालौर के चौहान( सोनगरा चौहान ),नाडोल के चौहान(jalor ke chohan)
3.सिरोही के चौहान राज वंश ( देवड़ा )(sirohi ke chohan raj vansh (deora))
इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान का परम मित्र चित्तौड़ का शासक समरसिंह भी मारा गया :-
अजमेर नगर में मुस्लिम सेनाओं ने विध्वंसकारी ताण्डव किया । अनेक मंदिर नष्ट कर दिये गये थे । संस्कृत पाठशाला एवं विष्णु मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया और उसका नाम अढाई दिन का झौपड़ा । रखा गया था । पृथ्वीराज चौहान को मारकर मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज । के अवयस्क पुत्र गोविन्दराज को अजमेर की गद्दी पर बैठाया किन्तु पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने अपने भतीज गोविन्दराज को अजमेर से मार भगाया था इसके बाद गोविन्दराज रणथंभौर चला गया था | 1194 ई . में कुतुबुद्दीन अजमेर आया और उसने तारागढ़ घेर लिया तथा अपनी पराजय निश्चित जानकर हरिराज और उसका सेनापति जैत्रसिंह जीवित ही अग्नि में प्रवेश कर गये ।
अजमेर पर अन्तिम रूप से मुसलमानों का अधिकार हो गया पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के साथ ही भारत का इतिहास मध्य काल में प्रवेश कर जाता है । इस समय दिल्ली , अजमेर तथा लाहौर प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे और ये तीनों ही मुहम्मद गौरी और उसके गवर्नरों के अधीन चले गये । कुतुबुद्दीन ऐबक ने हरिराज की मृत्यु के बाद अजमेर को मुस्लिम शासन के अधीन ले । लिया था । पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि व मित्र चन्दबरदाई ने पृथ्वीराज रासो ‘ व जयानक ने ‘ पृथ्वीराज विजय नामक ग्रंथ लिखे थे । तराईन के द्वितीय युद्ध में विजय के पश्चात् मोहम्मद गौरी ने शासन का कार्यभार कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया था ।
राजस्थान में तुर्क सत्ता एवं उसके प्रभाव को सुदृढ़ करने का श्रेय कुतुबुद्दीन ऐबक को है ।
सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में अजमेर आये थे ।
रणथम्भौर के चौहान :-
रणथम्भौर में चौहान वंश के शासन की स्थापना गोविन्दराज ने की , जो पृथ्वीराज चौहान का पुत्र था ।
उसके उत्तराधिकारी वाल्हण , प्रल्हादन , वीरनारायण , बागभट्ट , जैत्रसिंह तथा हम्मीर बने थे ।