नाडोल के चौहान(nadol ke chouhan) :-
जालौर के चौहान व नाडोल के चौहान – चौहान वंश की नाडोल शाखा का संस्थापक लक्ष्मण चौहान था |
जो शाकम्भरी नरेश वाक्पति का पुत्र था जिसने 960 ई . में चावड़ा राजपूतों के आधिपत्य को समाप्त करके
नाडोल में चौहान वंश का साम्राज्य स्थापित किया था। नाडौल नगर वर्तमान में पाली जिले में देसूरी के निकट स्थित है यहाँ पर आशापुरा माताजी का मुख्य मंदिर ( पाट स्थान ) स्थित है ।
आशापुरा माता नाडोल के चौहानों की कुलदेवी मानी जाती है ।
1.बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र,चंबल,पार्वती नदी(bangal ki khadi ka apavah tantra)
2.राजस्थान में वनों के प्रकार(शुष्क सागवान वन,शुष्क वन,मिश्रित पतझड़ वन)(rajasthan ke van)
3.जोधपुर के राजा राव सातल, राव सूजा और राव गांगा (jodhpur k raja rav satal , rav suja or rav ganga)
songara chouhan ka itihas (जालौर के चौहान, सोनगरा चौहान) :-
राजस्थान के दक्षिण – पश्चिम में स्थित जाबालि ऋषि की वन्दराज तपोभूमि जाबालिपुर ( वर्तमान जालौर ) में चौहान वंश की नींव ( राजकुमार कीतू ) ने डाली । जालौर में स्थित स्वर्ण गिरी पहाड़ी पर
परमार शासकों द्वारा निर्मित जालौर के किले ( सोनगढ़ ) को कीर्तिपाल के उत्तराधिकारी समरसिंह ने सुदृढ़ बनाया गया ।
समरसिंह के पश्चात् उदयसिंह , चाचिगदेव व सामन्तसिहं ने जालौर पर शासन किया था ।
1305 ई . में सामन्तसिंह का पुत्र कान्हड़देव गद्दी पर बैठा , जो यहाँ का सबसे प्रतापी राजा सिद्ध हुआ था।
गुजरात प्रस्थान कर रही अलाउद्दीन खिलजी की सेना को कान्हड़देव द्वारा अपनी भूमि से न गुजरने
देने से नाराज होकर जालौर पर आक्रमण कर दिया । ( 1311 ई . ) में मुहणोत नैणसी अलाउद्दीन खिलजी के जालोर पर आक्रमण का कारण उसकी पुत्री राजकुमारी फिरोजा का कान्हड़देव के पुत्र वीरमदेव से प्रेम प्रसंग मानते हैं |
वीरमदेव द्वारा शादी से इन्कार करने पर सुल्तान ने आक्रमण किया था ।
जालौर :-
जालौर के चौहान पर आक्रमण से पूर्व अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने 1308 ई . में सिवाना के किले पर आक्रमण करके उसे जीता ।
इस युद्ध में सिवाना दुर्ग का सरदार शीतलदेव व खिलजी का सेनानायक मारे गये ।
खिलजी ने किले का नाम खैराबाद रखा तथा कमालुद्दीन गुर्ग को दुर्गरक्षक नियुक्त किया था।
सिवाना दुर्ग पर आक्रमण करके लौटी खिलजी की सेना को कान्हड़देव के नेतृत्व वाली राजपूत सेना
ने ‘ मालकाना के युद्ध ‘ में हराकर सेनापति शम्स खाँ ‘ को बंदी बना दिया गया था।मालकाना के युद्ध में हार से बौखलाकर स्वयं अलाउद्दीन खिलजी ने विशाल सेना के साथ 1311 ई . में जालौर किले पर आक्रमण किया तथा किले को घेर लिया ।
इस आक्रमण के समय खिलजी का सेनापति कमालुद्दीन था ।
कान्हड़देव के साथ दहिया सरदार बीका द्वारा विश्वासघात करने पर शत्रु सेना किले में प्रविष्ट हुई |
जिसके पश्चात भीषण युद्ध में कान्हड़देव सहित लगभग सभी राजपूत योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए तथा किले पर खिलजी का अधिकार हो गया ।
युद्ध के पश्चात् कान्हड़देव के परिवार के जीवित रहे सदस्य मालदेव को चित्तौड़ के शासन की बागडोर सौंपी थी।
विश्वासघाती दहिया सरदार बीका की हत्या उसकी पत्नी ने की थी