सतारा वाद्य (sataara vaddh)
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यह अलगोजा , बाँसुरी तथा शहनाई का मिश्रित रूप देते है । इसमें अलगोजे की तरह दो लम्बी बाँसुरियाँ होती हैं । सतारा वाद्य में किसी भी इच्छित छेद को बन्द करके आवश्यकतानुसार सप्तक में परिवर्तन किया जा सकता है । इसका उपयोग बाड़मेर , जैसलमेर के जनजातीय लोग , मेघवाल और गड़रिया करते हैं ।
1.संत रामचरण जी, हरिराम दास जी, संत रामदास जी (sant ramcharn ji, hariram das ji, sant ramdas ji)
सुशीर वाद्य (sushira vaddh)
वे वाद्य यंत्र हवा से फूँक देकर बजाए जाते हैं सुषिर या फूँक वाघ कहलाते हैं
शहनाई नफिरी वाद्य (shahanai naphiree vaddh)
जय चिलम के आकार का वाद यंत्र हैं सुषिर वाद्य यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ एवम मांगलिक वाद्य यंत्र है यह शीशम यासागवान की लकड़ी का बना होता है । इसके लिए ताल के लिए नगाड़ों की संगत की जाती है ।
1.संत लालदास जी एवं लालदासी सम्प्रदाय (sant laladas ji avm laldasi sampradaay)
अलगोजा वाद्य (alagoja vaddh)
वादक दो अलगोजे मुँह में रखकर एक साथ बजाते है । एक अलगोजे पर स्वर कायम किया जाता है तथा दूसरे पर स्वर बजाये जाते हैं ।
बांसुरी यह बाड़मेर के राणका फकीरों । का प्रसिद्ध वाद्य यंत्र है ।
1.जाम्भोजी ( गुरु जंभेश्वर ), विश्नोई सम्प्रदाय (jambhoji (guru jambheshvar), vishnoi sampradaay)
पूंगी ( बीन ) वाद्य (pungi (bin) vaddh)
यह घीया या तुम्बे का बना एक विशिष्ट वाद्य यंत्र है । इसकी तुम्बी का पतला भाग लगभग डेढ़ बालिश्त लम्बा होता है तथा नीचे का हिस्सा गोल आकार का होता है । निचले आकार में दो छेद करके उसमें बाँस की दो नलियाँ मोम से लगा दी जाती हैं ।
यह कालबेलिया तथा जोगी या साँप पकड़ने वाली जातियों द्वारा बजाई जाती |
तुरही वाद्य (turahi vaddh)
इसका निर्माण पीतल की चद्दर को नलिकानुमा मोड़कर किया जाता है ।
यह प्राचीन काल में युद्ध वाद्य यंत्र था ।
मोरचंग वाद्य (morachanga vaddh)
यह लोहे का बना छोटा सा वाद्य यंत्र होता है ।
जिसमें एक गोलाकार हैण्डिल से छोटी और लम्बी छड़ें निकली होती हैं ,
जिसके बीच में पतले लोहे की एक लम्बी राड होती है जिसके मुंह पर थोड़ा – सा घुमाव दे दिया जाता है । इसका उपयोग कभी – कभी ती के साथ लय देने में किया जाता है ।
यह दाँतों के बीच में रखकर हवा से बजाया जाता है । इसे लगा जाति द्वारा बजाया जाता है