चौहान राजवंश के शासको का वर्णन(chouhan rajvansh ke shasako ka varnan) :-
chohan चौहान राजवंश के शासको का मूल स्थान सांभर के निकट सपादलक्ष क्षेत्र को माना जाता है ।
इसकी प्रारम्भिक राजधानी अहिच्छत्रपुर ( नागौर ) थी ।
इस चौहान राजवंश के शासन का संस्थापक शासक वासुदेव प्रथम माना गया है ।
vasudev chouhan(वासुदेव चौहान) :-
प्रथम शासक वासुदेव चौहानों को 551 ई . में बनाया गया ।
वासुदेव के पश्चात नरदेव , विग्रहराज , दुर्लभराज , अजयराज , अर्णोराज , पृथ्वीराज तृतीय प्रमुख चौहान शासक बनाया गया ।
vigrahraj divtya chouhan(विग्रहराज द्वितीय चौहान) :-
चौहान वंश का प्रथम प्रतापी शासक विग्रहराज द्वितीय हुआ जिसने 965 ई . में सपादलक्ष का शासन संभाला तथा चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को युद्ध में पराजित किया ।
1.जालौर के चौहान( सोनगरा चौहान ),नाडोल के चौहान(jalor ke chohan)
2.तराइन का प्रथम युद्ध और पृथ्वीराज तृतीय(tarain ka yuddh, prathviraj tratiy)
3.सिरोही के चौहान राज वंश ( देवड़ा )(sirohi ke chohan raj vansh (deora))
ajayraj chouhan(अजयराज चौहान) :-
चौहान वंश के शासक अजयराज ने 1113 ई . में अजयमेरू नगर ( अजमेर ) की स्थापना करके इसे अपनी राजधानी बनाया एवं अजयमेरू दुर्ग की नींव रखी थी।
arnoraj chouhan(अर्णोराज ( आनाजी ) चौहान) :-
अजयराज के पश्चात् उसका पुत्र अर्णोराज अजमेर का शासक बना दिया गया ।
इसने लुका को हराया , अजमेर में आना सागर झील व पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण कराया था।
1150 ईस्वी में चौलुक्य कुमार पाल ने अजमेर पर ‘ अधिकार ‘ कर लिया ।
पराजित अर्णोराज को विजेताकुमार पाल के साथ अपनी पुत्री का विवाह करना पड़ा ।
अर्णोराज की इस पराजय के बाद अर्णोराज के पुत्र जगदेव ने अर्णोराज की हत्या कर दी |
अजमेर के शासक बन गया जगदेव को शीघ्र ही गद्दी से हटाकर विग्रहराज चतुर्थ शासक बन गया ।
vigrahraj chouhan(विग्रहराज चतुर्थ ( बीसलेदव ) चौहान) :-
गजनी के शासक अमीर खुशरूशाह ( हम्मीर ) को चौहान राजवंश के शासक विग्रहराज चतुर्थ ने हराकर अपने राज्य का विस्तार किया तथा तोमरों को हराकर दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया ।
‘ चौहान वंश का स्वर्ण युग ‘ विग्रहराज चतुर्थ का शासनकाल कहलाता है ।
विग्रहराज चतुर्थ ने ‘हरिकेलि ‘ नाटक तथा इनके दरबारी विद्वान सोमदेव ने ‘ ललित विग्रह ‘ नामक नाटक का लिखित में उल्लेख किया ।
विद्वानों के आश्रयदाता होने के कारण ‘ कवि बान्धव ‘ की उपाधि विग्रहराज चतुर्थ को दी गई है ।
विग्रहराज चतुर्थ ने ‘हरिकेलि ‘ नाटक तथा इनके दरबारी विद्वान सोमदेव ने ‘ ललित विग्रह ‘ नामक नाटक का लिखित में उल्लेख किया । विग्रहराज चतुर्थ को विद्वानों के आश्रयदाता होने के कारण ‘ कवि बान्धव ‘ की उपाधि दी गई है ।
अजमेर में संस्कृत पाठशाला का निर्माण चौहान राजवंश के शासक विग्रहराज चतुर्थ ने करवाया , जिसे तोड़कर कुतुबुद्दीन ऐबक ने ढाई दिन का झोपड़ा ‘ नामक मस्ज़िद का निर्माण करवाया ।
बीसलदेव के मृत्यु कें परांत उसका पुत्र अपरगगेय ( अमरगांगेय ) अजमेर का शासक बना |
जिसे हटाकर जगदेव का पुत्र व उसका चचेरे भाई पृथ्वीराज द्वितीय अजमेर की गद्दी पर शासन किया।
पृथ्वीराज द्वितीय के नि : संतान मृत्यु होने पर अर्णोराज के एकमात्र जीवित पुत्र सोमेश्वर को अजमेर की गद्दी पर बैठाया ।