वन का दुर्ग (van ka durg)
रणथम्भौर का प्रसिद्ध गिरिदुर्ग घने जंगल और विशाल वन्य सम्पदा से सम्पन्न होने के कारण वन का दुर्ग की विशेषताओं को भी चरितार्थ करता है । बयाना , तिमनगढ़ आदि के किले वन दुर्ग के लक्षणों से परिपूर्ण हैं ।
दुर्गों से सम्बन्धित सैन्य यंत्र ।
लावा रासो , कान्हड़देप्रबन्ध , हमीरायण , अचलदास खींची री वचनिका सहित अधिकांश ऐतिहासिक काव्यों में विभिन्न सैन्य यत्रों का उल्लेख हुआ है । उदाहरणतः कान्हड़देप्रबन्ध में जालौर दुर्ग में विद्यमान – ढेकुली , मगरबी – यंत्र , अग्निबाण इत्यादि द्वारा शत्र सेना पर कहर ढाने का उल्लेख हुआ है ।
2.राजस्थान लोक संगीत लोकगीत एवं लोक वाघ – राजस्थानी शास्त्रीय संगीत (rajasthan shastriya sangit, rajasthani kavya guru ganpat, tok riyasat)
वन दुर्ग की विशेषताएं (van durg ki visheshatay)
आक्रमण के समय रणथम्भौर की सुरक्षा व्यवस्था का वर्णन करते हुए
वहाँ विद्यमान युद्धोपकरणों में परम्परागत अस्त्र शस्त्रों के अलावा अग्निबाणों ( प्रक्षेपास्त्र ) यंत्र नाली , ढेकुली , भैरव यंत्र , मरकटी यंत्र आदि का उल्लेख हुआ है ।
इनमें से अन्तिम उल्लेखित यंत्रों द्वारा शत्रु पर पत्थरों की बौछार की जाती थी
अचलदास खींची री वचनिका (achaldaas kheenchee ri vachanika)
अचलदास खींची री वचनिका ‘ में गागरोण के दुर्ग में उपकरणों का उल्लेख करते हुए
मुदफर को चतुर्दिक पाए वाला यंत्र बताया गया है
मुस्लिम इतिहास लेखको प्रमुखतः अबुल फजल ने किलो आक्रमण करने के लिए पाशीब और साबात बनाने का किया है । पाशीब किले की प्राचीर पर हमला करने के लिए रेत और अन्य वस्तुओं से निर्मित एक ऊँचा चबूतरा होता था । साबात को कविराजा श्यामलदास ने वीर विनोद में पेच छत्ता ‘ कहकर अभिहित किया है
जबकि साबात गाय या भैंस के मोटे चमड़े की छावन से ढका हुआ एक चौड़ा रास्ता होता है ।
जिसमें किलेवालों की मार से सुरक्षित बचकर आक्रान्ता किले के बहुत नजदीक तक पहुँच जाते हैं ।
अकबर ने 1567 ई . में चित्तौड़ पर आक्रमण के समय ऐसे दो साबात बनवाये थे
जिन्होंने उसकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ।
1.गवरी लोकनाट्य, तमाशा लोकनाट्य (gavari locknatkiya, tamasha locknatkiya)
3.राजस्थान के मुस्लिम संत एवं पीर, ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (rajasthan ke mushilam santn avm pir, khvaja muinnudin chishti)