लोकवाद्य (lokavaddh)
लोकगीतों के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं । लोकवाद्य के माध्यम से कलाकार अपने भावों की अभिव्यक्ति को प्रकट करते हैं । इनके माध्यम से कलाकार अपने हृदय की आवाज को जन – जन तक पहुँचाता है । इसके प्रयोग से लोक गीतों तधा लोकनृत्य की माधुर्य वृद्धि के साथ ही वातावरण एवं भावाभिव्यक्ति को प्रभावशाली बनाने का कार्य करता है । अत : राजस्थान के लोक संगीत में यहाँ के ठेठ ग्रामीण गायन परिवेश , स्थिति व भावों के अनुरूप लोक वाद्यों का प्रचुर विकास हुआ । लोक वाद्यों को बनाने के तरीके के आधार या निर्माण सामग्री के आधार पर चार भागों में बाँटा जा सकता है
तत् वाद्य (tat vaddh)
वे सभी वाद्य यंत्र जिनमें तार लगा होता है तथा तारों के माध्यम से विभिन्न आवाजें निकाली जा सकती हैं तत् वाद्य कहलाते हैं
1.गवरी लोकनाट्य, तमाशा लोकनाट्य (gavari locknatkiya, tamasha locknatkiya)
जन्तर वाद्य (jantara vaddh)
इसकी आकृति वीणा की प्रारम्भिक आकृति जैसी होती है ।
वीणा के समान ही इसमें दो तुम्बे लगे होते हैं ।
इस वाद्य यंत्र को खड़े होकर गले से लगाकर तारों को हाथों की अंगुलियों से बजाया जाता है ।
यह गुर्जर भोपों में अधिक प्रचलित है ।
देवनारायण जी की फड़ के वाचन के समय इसे बजाया जाता है ।
1.राजस्थान के लोकनाट्य – ख्याल लोकनाट्य, रम्मत लोकनाट्य (rajasthan ke locknatkiya – khyala locknatkiya, rammat locknatkiya)
सारंगी वाद्य (sarangi vaddh)
लोकगीतों में प्राय : इसका प्रयोग होता है । यह तत् वाद्यों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है ।
इसके पाँच प्रकार हैं – सिन्धी सारंगी , गुजरातण सारंगी , डेढ़ पसली सारंगी , धानी सारंगी व अलाबु सारंगी यह सागवान , कैर तथा सारंगी रोहिड़ा की लकड़ी से बनाई जाती है । इसमें 27 तार लगे होते हैं । इसमें प्रयुक्त ताँत बकरे की आँत की बनी होती है । इसका प्रयोग जैसलमेर तथा बाड़मेर के लंगा व जोगी जाति पं . रामनारायण राजस्थान के विख्यात सारंगी वादक है
1.मीरा बाई, मीरा का विवाह (mira bai, mira ka vivaha)
रावण हत्था वाद्य (ravan hattha vaddh)
यह बड़े नारियल की कटोरी पा मुड़कर बनाया जाता है ।
इसमें लगा डंडा बाँस खुटियाँ लगाई जाती हैं और नौ तार बांध दिया ।
हत्या तार पर दबाव देकर गज की सहायता की स अलर त्या , सारंगी , अल जी व भीलों के भोप यह बोगी मेवों सहायता से बजाया जाता है |
इसमें दो या तीन तार होते हैं ।
2.शाक्त मत, वैष्णव सम्प्रदाय (shakta mat, veshnava sampradaay)
3.जसनाथी सम्प्रदाय, मारवाड़ का नाथ सम्प्रदाय (jasnathi sampradaay, marwar ka nath sampradaay)