राव मालदेव का इतिहास (rav maldev ka itihas) ( 1531 – 1562 ई . ) :-
राव मालदेव का इतिहास :-
– 5 जून, 1531 को राव मालदेव जब जोधपुर की गद्दी पर बैठा तब दिल्ली में हुमायूँ का शासन था ।
राव मालदेव का राज्यारोहण सोजत में हुआ था , क्योंकि जोधपुर उस समय षडयंत्रों का केन्द्र बना हुआ था ।
मालेदव का विवाह जैसलमेर के शासक लूणकरण की पुत्री उमा दे से हुआ ।
उमा दे राव मालदेव शादी की पहली रात को ही मालेदव से रूठ गई जो आजीवन रूठी रही एवं अपना जीवन तारागढ़ अजमेर में गुजारा |
जिसे राजस्थान के इतिहास में रूठी राणी ‘ के नाम से जाना जाता है ।
1.बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र,चंबल,पार्वती नदी(bangal ki khadi ka apavah tantra)
2.जोधपुर के राजा राव सातल, राव सूजा और राव गांगा (jodhpur k raja rav satal , rav suja or rav ganga)
3.राठौड़ राजवंश का इतिहास(मालाणी के राठौड़,जोधपुर ( मारवाड़ ) के राठौड़,)
रावमालदेव का बीकानेर पर शासन (rav maldev ka bikaner per shasan) :-
मालदेव ने राव जैतसी को हराकर बीकानेर पर 1541 ई . में अधिकार किया था।
रावमालदेव ने अपनी तलवार से अपने पूर्वजों की कीर्ति को पुनः प्राप्त किया उसने जैतमालोत राठौड़ों से सिवाना , राड़धरा , पंवारों से चौहटन , पारकर तथा राधनपुर , सिंधल राठौड़ों से रायपुर तथा भाद्राजुन , बिहारी पठानों से जालौर , मल्लीनाथ के वंशजों से मालानी , दूदा के वंशज वीरमदेव से मेंड़ता , मेवाड़ के राणा से गोडवाड , बदनोर , मदारिया और कोसीथल , बीका , राठौड़ों से बीकानेर , चौहानो से साचोर देवड़ो सिरोही तथा मुसलमानों से नागौर , सांभर, डीडवाना तथा अजमेर छीन लिये मैं अपने पराक्रम से जोधपुर राज्य की सीमा गुजरात से लेकर आगरा के दिल्ली तक विस्तृत कर दी । दुर्भाग्य से मेड़ता वा वीरम राठौड़ से मालदेव का विग्रह हो गया । कानेर के राठौड़ों से उसकी शत्रुता रही । इससे वह पुरी तरह राठौड़ों की शक्ति को एकीकृत नहीं कर सका |
कानेर के राठौड़ों से उसकी शत्रुता रही ।
इससे वह पुरी तरह राठौड़ों की शक्ति को एकीकृत नहीं कर सका ।
राजा मालदेव कि शक्ति में बढ़ावा(raja maldev ki shakti me badhava) :-
मालदेव मारवाड़ में अपनी शक्ति बढ़ाने में लगा हुआ था उन दिनों दिल्ली व आगरा के मुगल शासक हुमायूँ को शेरशाह सूरी के हाथों पराजित होकर दर – दर की ठोकरें खानी पड़ रही थीं । इस कारण मालदेव को अपना राज्य विस्तार करने में अधिक कठिनाई नहीं हुई ।
उसने हुमायूँ को शरण देने का विचार किया |
उसे बुलावा भेजा हुमायूँ , मालदेव के निमंत्रण पर कोई ध्यान नहीं दिया और थट्टा के शासक शाह हुसैन के भरोसे लगभग एक साल गँवा दिया | तब मालदेव की शक्ति का अनुमान लगाकर मारवाड़ की ओर आया लेकिन मालदेव ने शेरशाह सूरी जैसे शक्तिशाली राजा से वैर लेना उचित नहीं समझा उसने हुमायूँ का कोई बढ़िया स्वागत नहीं किया हुमायूं डरकर अमरकोट की ओर भाग गया । भागती हुई मुगल टुकड़ी का मालदेव के सैनिकों ने पीछा किया किस रह गिरता – पड़ता हुमायूँ अमरकोट ( वर्तमान पाकिस्तान में ) के हिन्दू राजा की शरण में पहुँचा गया।
मालदेव शेरशाह सूरी का उत्तरी भारत में कोई प्रबल शत्रु था । दोनों के बीच युद्ध अवश्यंभावी था ।
मालदेव , के शत्रु – मेड़ता का वीरम तथा बीकानेर का कल्याणमल ने शेरशाह सूरी को उकसाकर मारवाड़ पर आक्रमण करवा दिया । दोनों के बीच जैतारण के निकट सुमेल नामक स्थान पर युद्ध हुआ |
जिसे ‘ गिरि – सुमेल ‘ का युद्ध कहा जाता है ।