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राजस्थान लोक संगीत लोकगीत एवं लोक वाघ – राजस्थानी शास्त्रीय संगीत (rajasthan shastriya sangit, rajasthani kavya guru ganpat, tok riyasat)

राजस्थानी शास्त्रीय संगीत (rajasthani shastriya sangit)

राजस्थानी शास्त्रीय संगीत
राजस्थानी शास्त्रीय संगीत

विकास राजस्थानी शास्त्रीय संगीत में विभिन्न रियासतों का योगदान महाराजा मानसिंह आमेर के भाई माधव सिंह के पुंडरीक विट्ठल को दरबार में आश्रय दिया माधव सिंह के प्रोत्साहन से पुंडरीक विट्ठल ने रसमंजरी वैराग माल ग्रंथों की उपासना की मिर्जा राजा जयसिंह ने अपने शासनकाल में अस्त कार रत्नावली संगीत ग्रंथ लिखवा कर लोक संगीत के अध्ययन को प्रेरित किया थासवाई प्रतापसिंह विद्वान व विद्वानों के आश्रयदाता थे जो स्वयं ‘ बजनिधि ‘ उपनाम से काव्य रचना करते थे । इन्होंने संगीतज्ञों व विद्वानों को दरबार में स्थान दिया जिसे ‘ गंधर्व बाईसी ‘ कहा जाता था । इन्होंने दरबारी संगीतज्ञ देवर्षि ब्रजपाल भट्ट के सहयोग से विशाल संगीत सम्मेलन का आयोजन करवाकर ‘ राधागोविन्द संगीतसार ‘ नामक प्रसिद्ध संगीत ग्रंथ की रचना करवाई । प्रतापसिंह के दरबारी व संगीत गुरु उस्ताद चाँद खाँ ने ‘ स्वर सागर ‘ , भट्ट द्वारकानाथ ने राग चन्द्रिका ‘ एवं देवर्षि ब्रजपाल भट्ट ने ‘ संगीत सार ‘ नामक ग्रंथ लिखे ।

1.सकराय माता (शंकरा), सच्चियाय माता, अम्बिका माता, दधिमती माता (sakaray mata (shankara), sachiyay mata, ambika mata, dadhimati mata)


राजस्थानी काव्य गुरु गणपत (rajasthani kavya guru ganpat)

प्रतापसिंह के दरबार में राजस्था काव्य गुरु गणपत भारती थे जिन्होंने संगीतसागर ‘ ग्रन्थ की रचना की ।

सवाई रामसिंह ने अपने दरबार में रजबअली ( बीनकार ) , मुहम्मद अली कोठी वाले ‘ , अमृत सेन ( सितार वादक ) अमीर खाँ ( सितारवादक ) , मुबाकर अली , घग्घे खुदाबख्श , बहराम खाँ अमीर सख्श , आलम हुसैन , मुन्नव खाँ आदि

प्रसिद्ध संगीतज्ञों को स्थान देकर संगीत को प्रोत्साहित किया ।

1.जीणमाता, जीणमाता की ननद (jinmata, jinmata ki nanad)


टोंक रियासत (tok riyasat)

टोंक रियासत के नवाब इब्राहीम खाँ के शासनकाल के प्रसिद्ध संगीतज्ञों में अल्लाबख्श , फैयाज खान , सफदर हुसैन , फिदा हुसैन , फतेह अली और अली बख्श , मियाँ काले खाँ प्रमुख थे । उणियारा ठिकाने के जागीरदारों ने अतरौली ( उत्तर प्रदेश ) से आए अनेक संगीतज्ञों को आश्रय दिया । औरंगजेब के शासनकाल में निष्कासित संगीतज्ञों को आश्रय राज्य की अलवर रियासत में मिला । महाराणा कुम्भा स्वयं संगीतज्ञ व विद्वानों के आश्रयदाता थे । महाराणा कुम्भा ने संगीताराज , रसिक प्रिया , सुड़ प्रबंध , संगीत मीमांसा संगीत सुधा , संगीत रत्नाकार टीका आदि संगीत ग्रंथों की । कुम्भा ने दरबार में सारंग व्यास ( संगीत गुरु ) कान्हा व्यास( एकलिंग महात्मय के रचयिता ) जैसे संगीतज्ञों को स्थान दिया ।

संगीतज्ञों व बीकानेर के महाराजा अनूपसिंह ( 1669 – 1695 ई . ) ने थे ।

संगीतज्ञों और संगीत शास्त्रकारों को आश्रय प्रदान किया जिसः । हयोग से पण्डित भावभट्ट प्रमुख थे

जिन्होंने अनूप संगीत विलास , अन गोविन्द संगीत रत्नाकर , अनूपाकुश , अनूप रागमाला , अनूप रागसा इत्यादि संगीत ग्रंथों की रचना की ।

अनूपसिंह ने स्वयं संगीतानुराग , । संगीत – विनोद नामक संगीत ग्रंथों की रचना की थी

1.राजस्थान की सगुण भक्ति धारा, शैव मत, नाथ सम्प्रदाय ( पंथ ) (rajasthan ki sahgun bhakti dhara, shev mat, nath sampradaay (panth)


2.राजस्थान में संत एवं संप्रदाय, संत पीपाजी, संत धन्ना, गुरु अर्जुन, संत रजबजी (rajasthan me sant avm sampradaay, sant pipaji, sant dhanna, guru arjun, sant rajabaji)


3.स्वांगिया माता (आवड़ माता), आशापुरा माता (svangiya mata (aavad mata), aashapura mata)


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