तेरहताली (terahatali)
पाली नागौर एवं जैसलमेर जिले की कामड़ जाति की विवाहित महिलाओं द्वारा रामदेवजी के मेले में किया जाने वाला धार्मिक एवं चित्तरंजक तेरहताली लोकनृत्य , जिसमें नृत्यांगना दायें पाँव पर नौ , प्रत्येक हाथ की कोहनी के एक – एक मंजीरे बाँधकर तथा दो मंजीरे हाथों में रखकर कुल तेरह मंजीरे परस्पर टकराते हुए विविध ध्वनियाँ उत्पन्न करती है । पृष्ठभूमि में पुरुष तम्बूरा , ढोलक इत्यादि वाद्य बजाते हुए संगत करते हैं । इस नृत्य का उद्गम स्थल पाली जिले का पादरला गाँ माना जाता है ।
नोरंजक काम जाति की विवाहित महिलाएं ही इस नृत्य को कर सकती है ।
माँगी बाई , मोहनी व नारायणी इसकी प्रसिद्ध कलाकार हैं ।
1.स्वांगिया माता (आवड़ माता), आशापुरा माता (svangiya mata (aavad mata), aashapura mata)
कच्छी घोडी kachchhi ghodi
शेखावाटी क्षेत्र एवं नागौर जिले के पूर्वी भाग में अधिक प्रचलित यह नृत्य पेशेवर जातियों द्वारा मांगलिक अवसरों एवं उत्सवों पर किया जाता है । इसमें नर्तक बाँस की बाहित घोड़ी को अपनी कमर में बांधकर , रंग – बिरंगे परिधान में आकर्षक नृत्य करता है तथा वीर रस के दोहे बोलता रहता है ।
कच्छी घोड़ी नृत्य के साथ में ढोल , बाँकिया एवं थाली बजती है ।
नृत्य के साथ रसाला , वैध रंगभरिया , बींद एवं लसकरिया गीत गाए जाते हैं ।
1.जीणमाता, जीणमाता की ननद (jinmata, jinmata ki nanad)
भवाई (bhavai)
यह राजस्थान का सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक लोक नृत्य है तथा मेवाड़ क्षेत्र की भवाई जाति द्वारा किया जाता है इस नृत्य में नर्तक द्वारा सिर पर बहुत से गड़े रखकर विविध मनोरंजन एवं रोमांचक क्रियाएं का आंगन किया जाता है
और भवाई में वह रावरी सुरजा दास संक्रिया ढोला मारू इत्यादि प्रसंग होते हैं
रूप सिंह शेखावत दया राम तारा शर्मा और श्रेष्ठ सोनी राजस्थान में इसके प्रसिद्ध नर्तक हैं
3.जसनाथी सम्प्रदाय, मारवाड़ का नाथ सम्प्रदाय (jasnathi sampradaay, marwar ka nath sampradaay)