राजस्थान के जल दुर्ग (rajasthan ke jal durg)
राजस्थान के जल दुर्ग के कई उदाहरण मिलते हैं । इस दृष्टि से गरोणगढ़ का दुर्ग ( झोलवाड़ ) जल दुर्ग की कोटि में आता है । राजस्थान के सबसे सुदृढ़ और प्राचीन दुर्गों में से एक गागरोण दुर्ग एक मजबूत और विशाल पर्वतीय चट्टान पर अवस्थित है जो तीन ओर से आह और कालीसिन्ध नदियों से घिरा हुआ है । सन् 1423 में गागरोण का वह इतिहास प्रसिद्ध साका हुआ जिसमें माइ ( मालवा ) के सुल्तान होशंगशाह के आक्रमण का जमकर मुकाबला करते हुए यहाँ के पराक्रमी शासक अचलदास खींची ने अपने सहखों योद्धाओं सहित वीरगति प्राप्त की तथा उसकी गनियों एवं दुर्ग की सैकड़ों ललनाओं ने जौहर की ज्वाला में अपनेप्राणों की आहुति दी । इस संग्राम का तत्कालीन कवि शिवदास गाडण ने ( जो कि सम्भवत इस युद्ध का प्रत्यक्ष – द्रष्टा था ) बहुत ही ओजस्वी और रोमांचक वर्णन किया है ।
1.भपंग, रवाज, कमायचा, इकतारा, तन्दूरा (तम्बूरा), रबाब वाद्य यंत्र (bhampag, ravaaj, kamaayacha, ikatara, tandura (tambura), rabaaba vaddh yantra)
गागरोण दुर्ग (gaagaron durg)
गाडण शिवदासकृत ‘ अचलदास खींची री वचनिका ‘ गागरोण दुर्ग पर हुए उस भीषण संग्राम का वर्णन करने वाली एक महत्वपूर्ण कृति है । भैंसरोड़गढ़ का दुर्ग ( चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित ) भी जल दुर्ग की कोटि में आता है ।
यह किला रावतभाटा के निकट चम्बल और बामनी नदियों के संगम पर अवस्थित है ।
इसी प्रकार जलघराव दक्षिण भारत के वैल्लोर में भी हुआ है ।
अतः भैंसरोड़गढ़ को राजस्थान का वैल्लोर ‘ भी कहा जाता है ।
गिरि दुर्ग (giree durg)
मयूराकृति का होने के कारण इस दुर्ग को ‘ मयूर ध्वजगढ़ ‘ भी कहते हैं ।
मेवाड़ का मांडलगढ़ का किला ( वर्तमान में भीलवाड़ा जिले में भी एक प्रमुख गिरि दुर्ग है ।
शृंगी ऋषि शिलालेख के अनुसार महलाकृति का होने के कारण ही संभवतः इस दुर्ग का नाम मांडलगढ़ पड़ा । सम्राट अकबर ने मांडलगढ़ को केन्द्र बनाकर प्रताप के विरुद्ध सैनिक अभियान किये । जगन्नाथ कछवाहा ने मांडलगढ़ के समीप पुरमाडल में शाही थाने की रक्षा करते हो वीरगति पायी जिनका स्मारक वहाँ विद्यमान है । ( जगन्नाथ कछवाहा की छतरी ) ढूंढाड़ के कछवाहा राजवंश की पूर्व राजधानी आम्बेर का दुर्ग ( जयपुर ) भी पर्वत श्रृंखलाओं से परिवेष्ठित है । किले के नीचे मावळा तालाब और दिलआराम ( दिलाराम ) का बाग उसके सौन्दर्य को द्विगुणित कर देते हैं । राजा मानसिह , मिजो राजा जगसिह , सवाई जयसिंह और अन्य नरेशों द्वारा निर्मित आम्बर के भव्य राजप्रसाद राजपूत शैली पर बने हैं ।
यत्र तत्र उममें मुगलकाल की हिन्दू मुस्लिम स्थापत्य कला के समन्वय की प्रवृत्ति भी मुखरित हुई है ।
3.गवरी लोकनाट्य, तमाशा लोकनाट्य (gavari locknatkiya, tamasha locknatkiya)