राजस्थान की कला एवं संस्कृति : एक परिचय
संतों , शूरों एवं दानवीरों की भूमि ‘ राजस्थान की कला ‘ अपनी विशिष्ट संस्कृति एवं मेलजोल की भावना के लिए पूरे संसार मैं प्रसिद्ध है । यहाँ के लोग मेहनती , उत्साही एवं कर्मठ होते हैं ।राजस्थान की कला प्राचीनकाल से ही यहाँ के शासकों ने राज्य की विशिष्ट संस्कृति को बढ़ावा एवं संरक्षण प्रदान किया है ।
कवियों ने अपने काव्य के विविध रंगों में इसकी इन्द्रधनुषी परम्पराओं को संजोया है
वहीं लोक गायकों एवं लोक कलाकारों ने इसे आमजन के मानस पटल पर अंकित एवं रूपांतरित किया है ।
वर्तमान में यहाँ के लंगा , मांगणियार , कालबेलिया , नट , भांड एवं भवाई लोक कलाकार सम्पूर्ण भारत के अलावा सात समन्दर पार भी राजस्थानी संस्कृति के विविध रंग बिखेर रहे हैं ।
विदेशों में भी लोग राजस्थानी लोकगीतों की धुनों पर थिरकते एवं आकर्षित होते हैं ।
यहाँ का शास्त्रीय संगीत जन – जन के मन के तारों को झंकृत कर देता है
कत्थक के विविध आयामों को देखने से पारलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है ।
1.राजस्थान की संस्कृति (rajasthan ki sanskarti)
2.राजस्थान में कला एवं संस्कृति (rajasthan me kala avm sanskarti)
एक परिचय
रेबारी , गाड़िया लोहार , बंजारे , कालबेलिया आदि जातियाँ आज । भी अपनी परम्परागत वेशभूषा से बेहद लगाव रखती है ।
राजस्थान के सांस्कृतिक आँचल में सभी धर्मों के लोग अपनी विशिष्ट संस्कृति संजोये हुए हैं ।
ख्वाजा की दरगाह में सभी धर्मों के लोगों द्वारा जियारत करना
बाबा रामदेव ( रामसा पीर ) के मेले में हिन्दू – मुस्लिमों की उपस्थिति केसरियानाथ के चरणों की केसर को पीते हुए जैन एवं आदिवासी तथा पुष्कर के पवित्र सरोवर में डुबकी लगाते है हिन्दू – जैन – सिक्ख – आदिवासी राजस्थान की संस्कृति में साम्प्रदायिक सद्भाव एवं मेलजोल की परम्परा की पुष्टि करते हैं । राजस्थान की सैकड़ों लोक कलाएँ एवं लोक कलाकार विश्व मंच पर सदैव छाए रहते हैं । यहाँ के हस्तनिर्मित कपड़े , आभूषण , विविध, , गलीचे , सजावटी सामान , हस्तशिल्प की वस्तुएँ एवं पेंटिंग्स सम्पूर्ण देश के अलावा विश्व के कोने – कोने में अपनी पैठ बनाए हुए हैं । इन हस्तशिल्पों पर उकेरे गए
या चित्रित विभिन्न अलंकरण यथा वृक्ष , पशु , पक्षी , चाँद , सूर्य , तारे इत्यादि कति प्रेम का विशेष संदेश देते हैं ।
मयूर पक्षी यहाँ का प्रधान जीव प्रसार चित्रांकन रहा है जो अपनी सुन्दरता के लिए जग मैं प्रसिद्ध है ।
महत्त्व वर्ष भर विभिन्न उत्सवों एवं त्योहारों पर सजी – धजी रंगीन झाँकियाँ
बहरंगी वेशभूशा में स्त्री – पुरुष – बच्चे , पशुओं का श्रृंगार , स्वादिष्ट समय व्यंजनों की उपस्थिति
मेहमानों की रेलमपेल एवं असीम उत्साह दिला राजस्थान की संस्कृति को जीवन्त कर देते हैं ।
3.राजस्थाल साहित्य अकादमी, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (rajasthal, sahitya akadami, rajasthani bhasha, sahitya avm sanskarti akadami)