महाराणा संग्राम सिंह द्धितीय (maharana sangram singh divtiya)(1710 – 1734 ई.)
महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी एवं सीसारमा गाँव में वैद्यनाथ का मंदिर व वैद्यनाथ प्रशस्ति का निर्माण करवाया ।
मराठों के विरुद्ध राजपूत महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय नरेशों का हुरडा़ सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई लेकिन उसके पूर्व ही निधन हो गया।
रावल रत्नसिंह, गोरा व बादल राजपूत सरदार (raval ratansingh, gora v badal rajput sardar)
महाराणा जगतसिंह द्वितीय (maharana jagtsingh divtiya)(1734 – 1778 ई.)
1734 ई . में राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए जगतसिंह द्वितीय के शासनकाल में मराठों ने मेवाड़ में प्रवेश – कर कर वसूला । जुलाई 1734 ई . में जगत सिंह द्वितीय की अध्यक्षता में हुरड़ा (भीलवाड़ा) में मराठों के विरुद्ध राजपूताने के नरेशों का सम्मेलन हुआ
लेकिन निजी स्वार्थों के कारण यह असफल रहा ।
महाराणा कुम्भा (maharana kumbha)
महाराणा प्रतापसिंह (maharana parthapsingh)
जिस समय महाराणा जगतसिंह द्वितीय की मृत्यु हुई उस समय उसका पुत्र प्रतापसिंह कैदखाने में था । सलूम्बर के रावत जैतसिंह ने कुँवर प्रतापसिंह को कैदखाने से निकालकर मेवाड़ का महाराणा बनाया । प्रतापसिंह एक योग्य राजा था
किन्तु उसके पिता जगतसिंह के शासन काल में राज्य की दुर्दशा अपने चरम पर पहुँच गई थी ।
सरदार भी राणा का कहना नहीं मानते थे ।
महाराणा राजसिंह द्वितीय (maharana rajsingh divtiya)
तीन वर्ष से भी कम समय राज्य करके प्रतापसिंह का देहान्त हो गया तथा उसका एकमात्र पुत्र राजसिंह द्वितीय मेवाड़ का स्वामी हुआ । गद्दी पर बैठते समय राजसिंह की आयु मात्र साढ़े दस वर्ष थी । उसे बालक जानकर मराठों ने मेवाड़ पर धावे मारने शुरू कर दिये । महाराणा मराठों को रोकने में असमर्थ था । महाराणा ने मराठों से संधि कर ली तथा चम्बल के निकट के परगनों की आमदनी उन्हें देनी स्वीकार कर ली ।
राजसिंह द्वितीय मात्र 7 वर्ष शासन करके 1761 ईस्वी में मर गया।
वागड़ उसके कोई संतान नहीं थी अतः महाराणा जगतसिंह द्वितीय के छोटे पुत्र अरिसिंह को गद्दी पर बैठाया गया ।
2.शक्तिकुमार, वैरिसिंह, विक्रमसिंह, जैत्रसिंह (shaktikumar, verisingh, vikramsingh, jetrasingh)
3.राणा हम्मीर, महाराणा मोकल, महाराणा मोकल (rana hammir, maharana mokal, maharana mokal)