महाराणा कुम्भा (maharana kumbha)( 1433 – 1468 ई.)
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० मोकल की हत्या के पश्चात् उसकी परमार रानी सौभाग्यवती का पुत्र कुम्भा 1433 ई . में मेवाड़ का महाराणा बना । कुम्भा के शासनकाल में मण्डोर के शासक रणमल की हत्या मेवाड़ में हुई तथा कुम्भा ने चूड़ा को भेजकर मण्डोर पर अधिकार किया , परन्तु रणमल के पुत्र राव जोधा ने पुनः मण्डोर पर अधिकार कर लिया । जोधा ने अपनी पुत्री शृंगार देवी का विवाह कुम्भा के पुत्र रायमल से करके मेवाड़ – मारवाड मैत्री को पुन : स्थापित किया ।
महाराणा कुम्भा व मालवा के शासक महमूद खिलजी के मध्य हुए
सारंगपुर के युद्ध ( 1437 ई . ) में कुम्भा ने महमूद खिलजी को हराया ।
इस विजय के उपलक्ष्य में उसने चित्तौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण किया ।
1.राजस्थान की मीठे पानी की झीले (rajasthan ki mithe pani ki jeele)
2.रेगिस्तान की अनेक पशु नस्लें – ऊंट, अश्व (घोड़े ), गधे, खच्चर, सुअर, कुक्कुट(मुर्गी)पालन (registan ki anek pashu nasle – unth, ashve(gode), gadhe, khachar, suar, kukkuta(murgi)palan)
शम्स खाँ (samsa kha)
महाराणा कुम्भा ने नागौर के शासक फिरोज खाँ की मृत्युपरान्त उत्तराधिकारी संघर्ष में फिरोज खाँ के भाई मुजाहिद खाँ के विरुद्ध शम्स खाँ को सैनिक सहायता प्रदान कर नागौर का शासक इस शर्त पर बनाया कि वह ( शम्स खाँ ) किले की किलेबंदी नहीं करेगा ।
परन्तु शम्स खाँ द्वारा शर्त का उल्लंघन करने पर कुम्भा ने नागौर पर आक्रमण किया ।
शम्स खाँ की सहायता करने पहुँची सुल्तान कुतुबुद्दीन के नेतृत्व वाली गुजरात सेना व नागौर की संयुक्त सेना को कुम्भा ने पराजित किया ।गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन ने सिरोही के देवड़ा शासक के साथ मिलकर मेवाड़ पर आक्रमण किया लेकिन उनको भी | कुम्भा के हाथों हार झेलनी पड़ी । कुम्भा से पराजित होकर लौट रहे गुजरात सुल्तान कुतुबुद्दीन ने ताज खाँ नामक दूत मालवा सुल्तान के पास भेजा तथा कुम्भा के विरुद्ध गुजरात व मालवा सुल्तानों ने चम्पारन की संधि की । चम्पारन की संधि के अनुसार गुजरात सुल्तान ने दक्षिण से तथा मालवा सुल्तान ने मालवा की तरफ से 1458 ई . में मेवाड़ पर एक साथ आक्रमण किया लेकिन इस युद्ध में कुम्भा विजयी रहे ।
1.राजीव गांधी सिद्धमुख नोहर सिंचाई परियोजना (rajiv gandhi sidhdmukh nohar sichai priyojana)
2.राजस्थान की प्रमुख नहर परियोजना, भरतपुर, गुड़गांव, जाखम बांध, गंगनहर, ईसरदा बांध (rajasthan ki parmukh nahar priyojana, bhartpur, gudagav, jakham bandh,gangnahar, esarada bandh)
महाराणा कुम्भा की सास्कृतिक उपलब्धियाँ (maharana kumbha ki saskartik upastithya)
महाराणा कुम्भा की सास्कृतिक उपलब्धियाँ महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल में 32 दुर्गों का निर्माण जीर्णोद्धार करवाया ।
कुम्भा ने कुंभलगढ़ में कुंभलगढ़ या तथा इसके ऊँचे भाग पर कटारगढ़ ‘ कुम्भा का निवास बनवाया गया।
सिरोही के निकट बसंतगढ़ का दुर्ग , बदनौर के निकट ‘ बैराठ का दुर्ग
भोमट का दुर्गव आबू में अचलगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया ।
कुम्भा ने मालवा विजय के उपलब्ध में चित्तौड़गढ़ में विजय स्तम्भ बनवाया ।
इसमें 9 मंजिल हैं तथा प्रत्येक मंजिल पर देवी – देवताओं की मूर्तियाँ हैं अत : इसे ‘ भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष ‘ कहते हैं ।
मुख्य द्वार पर विष्णु की मूर्ति होने के कारण इसे ‘ विष्णु ध्वज ‘ भी कहते हैं ।
महाराणा कुम्भा के शासनकाल में रणकपुर का जैन मंदिर ( पाली ) , कुम्भ स्वामी मंदिर (चित्तौड़) व शृंगार चंवरी का मंदिर का निर्माण करवाया । महाराणा कुम्भा कला प्रेमी व विद्वान थे जिसने संगीतराज , संगीत मीमांसा , रसिक प्रिया (गीत गोविन्द की टीका) व कामराज रतिसार नामक ग्रंथों की रचना की । महाराणा कुम्भा के दरबार में सारंग व्यास (संगीत गुरु) ,कान्हा व्यास (एकलिंग महात्म्य के रचयिता), अत्रिभट्ट व उसका पुत्र महेशभट्ट (कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति के रचियता) रमादेवी (कुम्भा की संगीतज्ञ पुत्री) , मण्डन ( शिल्पी ) प्रमुख । विद्वान एवं विदुषियाँ थे । कुम्भा को अभिनव भरताचार्य (संगीतज्ञ) राण रासौ (साहित्यकारों का आश्रयदाता) , हाल गुरु (पहाड़ी दुर्गों का स्वामी)
रामरायण , महाराजाधिराज, महाराणा, राजगुरु, परमगुरु, छापगुरु इत्यादि उपाधियाँ प्राप्त थीं ।
महाराणा कुम्भा की 1468 ई . में उसके पुत्र ऊदा ने कटारगढ़ ( कुंभलगढ़ ) में हत्या कर दी ।