जीणमाता (jinmata)
शेखावाटी क्षेत्र की आराध्य देवी जीण भवानी का मन्दिर सीक जिले में गोरिया के निकट हर्ष पर्वत पर उपस्थित है । जीणमाता शाकम्भरी व अजमेर के चौहान शासकों की आराध्य देवी रही हैं । हर्षपर्वत से प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार जीण भवानी के वर्तमान मन्दिर का निर्माण राजा हट्टड द्वारा करवाया गया था । मन्दिर में अखण्ड ज्योति जलती है , जिसके लिए तेल तत्कालीन अजमेर एवं दिल्ली के शासकों द्वारा भेजा जाता था । हर्षपर्वत के निकट ‘ काजल शिखरा ‘ नामक पहाड़ी पर जीण के भाई हर्ष भैंरू का थान है ।
यहाँ भी अखण्ड ज्योति जलती रहती है इस ज्योति से बनी काजल अत्यन्त शभ मानी जाती है ।
जीणमाता धांधलजी की पुत्री एवं हर्ष की बहन थीं ।
एक जनश्रुति के अनुसार हर्ष के विवाह के बाद भी दोनों भाई – बहनों में पहले जैसा स्नेह था ।
3.सुन्धा माता, नारायणी माता, त्रिपुर सुन्दरी ( तुरताई माता ) (sundha mata, narayani mata, tripura sundari (turatai mata)
जीणमाता की ननद (jinmata ki nanad)
एक दिन दोनों ननद – भोजाई ( हर्ष की पत्नी ) पानी लेकर आ रही थीं
तो रास्ते में दोनों में इस बात पर शर्त लगी कि हर्ष सबसे पहले किसके सिर से मटकी उतारेगा । घर पहुँचने पर हर्ष ने पहले अपनी पत्नी की मटकी उतारी , बाद में जीण की इस घटना से नाराज होकर जीण समीपवर्ती जंगल में पर्वत पर जाकर तपस्या करने लग गई थी। हर्ष ने जाकर बहन को खूब मनाया लेकिन वह नहीं मानी , तो हर्ष को भी गृहस्थ जीवन से घृणा हो गई , वह भी वहीं पर तपस्या करने लग गया । तभी से दोनों जीण माता ‘ एवं ‘ हर्ष भैरू ‘ के नाम से विख्यात हुए । जीणमाता का मेला चैत्र एवं आश्विन नवरात्रों में भरता है मेले मैं देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु वाह दर्शन करने आते हैं मंदिर में अष्टभुजी प्रतिमा प्रतिस्थापित की गई है शेखावटी के एक चारण कवि द्वारा जीण माता की वीर चित गीत राजस्थान के लोक साहित्य में सबसे बड़ा गीत माना गया है
1.शिला देवी, शीतला माता (शील माता) (shila devi, shitala mata(shil mata)