चित्तौड़ का वीर पत्ता (chittod ka veer patta)
चित्तौड़ का वीर पत्ता किले के भीतर प्रवेश करती हुई शाही सेना के साथ दुर्धर्ष युद्ध करता हुआ रामपोल के भीतर अपने प्रमुख योद्धाओं सहित काम आया । मेवाड़ के प्रायः सभी संस्थानों ( ठिकानों ) के योद्धा शत्रु से लड़ते हुए काम आये । इस तरह 25 फरवरी , 1568 ई . को अकबर का चित्तौड़ के किले पर अधिकार हो गया । आसफ खाँ पर किले की रक्षा का दायित्व छोड़कर अकबर अजमेर चला गया । तदनन्तर जयमल और चित्तौड़ का वीर पत्ता पर मुग्ध होकर अकबर ने आगरा के किले के प्रवेश द्वार के बाहर उनकी हाथी पर सवार संगमरमर की प्रतिमायें स्थापित करवायीं जो औरंगजेब के समय तक वहाँ विद्यमान थीं ।
2.राजस्थान के दुर्ग, भूमि दुर्ग की विशेषताएं, वीर अमरसिंह राठौड़ (rajasthan ke durg, bhumi durg ki visheshatay, veer amarsingh rathor)
चित्तौड़ की स्थापत्य (chittoor ki stapana)
वीरता और बलिदान की घटनाओं के लिए प्रसिद्ध चित्तौड़ स्थापत्य की दृष्टि से भी अपने ढंग का एक निराला दुर्ग है । सुदृढ़ और घुमावदार प्राचीर , उन्नत और विशाल बुर्जे , सात अभेद्य प्रवेश द्वार , किले पर पहुँचने का टेढ़ा – मेढ़ा सर्पिल मार्ग इन सब विशेषताओं ने इसे एक विकट दुर्ग का रूप प्रदान किया है । किले पर जाने का प्रमुख मार्ग पश्चिम की ओर से है जो शहर के भीतर से पुरानी कचहरी के पास से जाता है । इस मार्ग में सात विशाल प्रवेश द्वार हैं जो एक सुदृढ़ प्राचीर द्वारा परस्पर जुड़े हैं । इनमें प्रथम दरवाजा पाडनपोल कहलाता है ।
इसके पाश्र्व में प्रतापगढ़ के रावत बाघसिंह का स्मारक ‘ बना है
जो चित्तौड़ के दूसरे साके के समय बहादुरशाह की सेना से जूझते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे ।
किले का दूसरा प्रवेश द्वार भैरवपोल और तीसरा हनुमानपोल कहलाते हैं
जहाँ पर उक्त देवताओं की प्रतिमायें प्रतिष्ठापित हैं इन दोनों ऐतिहासिक दरवाजों के मध्य अकबर की सेना को लोहे चने चबवाने वाले अतुल पराक्रमी जयमल और कल्ला राठौड़ की छतरियाँ बनी हैं
जो 1567 ई . के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे ।
1.जालौर का दुर्ग, आबू का अचलगढ़ दुर्ग (jaalor ka durg, aabu ka achalagadh durg)
चित्तौड़ के पोल (cittoor ke pol)
तत्पश्चात् गणेशपोल , जोड़लापोल और लक्ष्मणपोल दुर्ग के अन्य प्रवेश द्वार आते हैं ।
सातवाँ और अन्तिम दरवाजा रामपोल है
जिसके सामने मेवाड़ के आमेट ठिकाने के यशस्वी पूर्वज पत्ता सिसोदिया का स्मारक है
जिसने तीसरे साके के समय आक्रान्ता से जूझते हुए प्राणोत्सर्ग किये थे ।
चित्तौड़ के किले में अनेक पुराने महल , देव मन्दिर , कीर्ति स्तम्भ . जलाशय , विशाल बावड़ियाँ , शस्त्रागार , अन्न भंडार , गुप्त सुरंगें इत्यादि विद्यमान है । इनमें महाराणा कुम्भा के द्वारा निर्मित भव्य राजमहल परम्परागत हिन्दू स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं ।
भारतीय वास्तुशास्त्र के आदर्शों के अनुरूप निर्मित ये भवन यद्यपि बहुत कुछ भग्न और खण्डित हो गये हैं ।
1.जयगढ़ दुर्ग, निराला दुर्ग (jayagadh durg, niraala durg)
3.कुम्भलगढ़ दुर्ग, अरावली पर्वत श्रृंखला (kumbhalagadh durg, araavalee parvat shrankhala)