राजस्थान की संस्कृति (rajasthan ki sanskarti)
यहाँ की धर्म प्रधान रही है अतः यहाँ राजस्थान की संस्कृति मूर्तियों , शिल्प कलाकृतियों , चित्रों एवं साहित्य में देवी – देवताओं को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है ।
प्रत्येक शुभ कार्य से पूर्व गणेश जी को न्यौता ( निमंत्रण ) देने की परम्परा है ।
राजस्थान में शादी का पहला निमंत्रण – पत्र रणथम्भौर ( रणतभंवर ) के गणेशजी को भेजने की परम्परा होती है ।
यहाँ पर प्रतिवर्ष व्यक्तिश : एवं डाक द्वारा हजारों लोग निमंत्रण पत्र पहुँचते हैं । यहाँ का पुजारी इन पत्रों को भगवान गणपति के सम्मुख रखकर कहता है |
1.बायो फ्यूल प्राधिकरण (bayo falula pradhikarn)
2.स्वस्थ भारत मिशन ग्रामीण योजना (svastha bhart missan gramin yojana)
‘ न्यौतो मानज्यो महाराज (nyoto manjyo maharaj)
ईसा पूर्व एवं ईसा के पश्चात् की विभिन्न सभ्यताओं के राजस्थान में मिले अवशेषों पर
विशेषकर सिक्कों पर विभिन्न देवी – देवताओं का अंकन इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन समय में भी यहाँ की संस्कृति में देवी – देवताओं की सर्वोच्चता थी । चित्तौड़ के दुर्ग में स्थित विजय स्तम्भ अनेक महत्वपूर्ण भारतीय देवी – देवताओं की मूर्तियों को समेटे हुए है , इस स्तम्भ को भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष ‘ भी कहा गया है |कालीबंगा से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों ( मृद्भाण्डौं ) पर मछली , कछुए एवं बतख का अंकन तत्कालीन निवासियों के प्रकृति प्रेम को उजागार करता है ।
माध्यमिका ( नगरी ) एवं रैढ़ ( टोंक ) से प्राप्त प्राचीन मूर्तियों में देवी हाथ में मीन ( मछली ) धारण किए हुए है ।
कृष्ण लीलाएँ ‘ राजस्थान की संस्कृति का एक विशिष्ट विषय है । यहाँ की मूर्तियों , मन्दिरों के तोरणद्वारों चित्रों , फड . पिछवाई , हस्तशिल्प आदि पर कृष्णलीला के विविध आयाम बड़ी संजीदगी से उल्लेखित हैं । नाथद्वारा , जयपुर , कामाँ , करौली , कोटा एवं ब्रज क्षेत्र कृष्ण लीलाओं के प्रधान केन्द्र रहे हैं । राजस्थानी भाषा अपनी मृदुता एवं सम्मानजनक सम्वोधन के रूप में संस्कृति की विशिष्ट वाहक है । वैसे तो सम्पूर्ण राजस्थान की भाषा ही मृदु है तथापि जोधपुर का निकटवर्ती क्षेत्र अपनी मीठी बोली के लिए प्रसिद्ध है ।
‘ पधारो सा यहाँ का प्रमुख सम्बोधन है , जो सबके दिल को छू लेता है ।
2.संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (sampuran gramin rojgar yojana)(S.G.R.Y)
3.डांग क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम, जनता जल योजना (dhang chetriya vikas karyakram, janta jal yojana)