अवनद्ध वाघ (avanadhd vaddh)
जो वाघ पशुओं की खाल से बने होते हैं या फिर चमड़े से ढके होते हैं उन्हें अवनद्ध वाद्य कहा जाता है । कुछ महत्वपूर्ण अवनद्ध वाद्य अवनद्ध वाघनिम्न है
मृदंग वाघ (mardang vaddh)
ताल वाद्यों में सबसे महत्वपूर्ण मृदंग को माना गया है । इसको बीजा , सुपारी और वट की लकडी को खोखला करके उस पर बकरे की खाल मढ़कर बनाया जाता है । तथा इसका मुह एक तरफ से चौड़ा तथा दूसरी तरफ से सँकडा होता है । कुंडी पर एक तरफ स्याही तथा दूसरी तरफ आटा लगा होता है । इसका उपयोग धार्मिक स्थानों तथा रावल व राविया जाति के लोग नृत्य के साथ करते हैं । इसको पखावज ‘ भी कहते हैं ।
1.मीरा बाई, मीरा का विवाह (mira bai, mira ka vivaha)
नौबत वाघ (nobat vaddh)
इसे धातु की अर्द्ध गोलाकार कुण्डी पर भैंसे की खाल से मढ़कर तैयार किया जाता है ।
तथा यह मोड़कर लकड़ी के डंडे से बजाया जाता है । इसे मन्दिरों तथा राजात रूप । महाराजा के महलों के मुख्य द्वार सतारा पर बजाया जाता है ।
चंग वाघ (chang vaddh)
लकड़ी का बना गोल घेरा जिसे खाल से मढ़कर तैयार किया जाता है ।
इसका प्रयोग विशेषकर होली पर किया जाता है ( शेखावाटी क्षेत्र का चंग नृत्य ) ।
ढोलक वाघ (dolak vaddh)
यह लकड़ी या लोहे का बना ताल वाद्य यंत्र होत्ता है ।
इसे प्रायः खकर हाथों की ताल से बजाया जाता है । यह एक मांगलिक वाद्य यंत्र कहलाता है ।
नगाड़ा वाघ (nagaada vaddh)
यह रामलीला , ख्याल , वाद्य नौटंकी में बजाया जाने वाला प्रमुख वाद्य यंत्र है । यह पाड़े या बकरे की खाल से मढ़कर तैयार किया जाता है । भैरूजी तथा माताजी के मन्दिर कारणा में नगाड़ा बजाया जाता है ।
नगाड़ा वाद्य युगल ( नर व मादा ) में होते हैं ।
पुष्कर निवासी रामकिशन सोलंकी इस वाद्य यंत्र को बजाने में सिद्धहस्त माने जाते हैं ।
1.शाक्त मत, वैष्णव सम्प्रदाय (shakta mat, veshnava sampradaay)
मशक वाघ (mashaka vaddh)
चमड़े की सिलाई कर बनाये गए इस वाद्य यंत्र के स्वर पूँगी की तरह सुनाई देते हैं । यह भैरूजी के भोपों का प्रमुख वाद्य है । इसमें वादक एक नली में हवा भरता है व दूसरी नली पर अंगुलियों से स्वर निकालता है ।
1.जसनाथी सम्प्रदाय, मारवाड़ का नाथ सम्प्रदाय (jasnathi sampradaay, marwar ka nath sampradaay)
नड़ वाघ (nada vaddh)
यह मशक जैसा ही वाद्य है । इसे मुँह पर टेढ़ा रखकर बजाया जाता है । इसका प्रयोग जैसलमेर जिले में होता है । करणा भील इस वाद्य यंत्र को बजाने में सिद्धहस्त माने जाते हैं।
3.राजस्थान के रामस्नेही सम्प्रदाय, संत दरियावजी रेण शाखा (rajasthan ke ramsanehi sampradaay, sant dariyavaji ren shakha)